Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 516
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४८०) . वसंतराजशाकुने-अष्टादशो वर्गः। पराङ्मुखः या खनति क्षिति यो यो वा समारोदिति पूर्णवक्रः ॥ प्रतिष्ठमानस्य पुरः स्थितोऽसौ भयाद्भयं जल्पति दुर्निवारम् ॥ १९५ ॥ विज़ुभते लेढि च नासिकाग्रं यः स्वांगभंग भयणः करोति ॥ स लाभहानि प्रकरोति पुंसां मृत्युप्रदः श्वांतरलंघनेन ॥ १९६॥ विधूतकणे शुनि चेत्पुरस्तात्पांथो विशेद्वेश्म तदा समस्तम् ॥ प्रत्यागतोऽर्थ यमुपायं पापास्तं राजकीयाः पुरुषा हरंति ॥ १९७ ॥ गतौ निवृत्तावथ वाश्वयुद्ध युद्धाय बंधायवधाय च स्यात् ॥जति तारायदि युद्धशक्ताःश्वानस्तदास्यात्पथि चौरभीतिः॥१९८॥ ॥ टीका ॥ वंति॥१९४॥पराङ्मुखेति ॥ यः श्वा पराङ्मुखः पश्चान्मुखः क्षिति पृथिवी खनति यःप्रतिष्ठमानस्य गच्छतः जनस्य पुर स्थितः पूर्णवक्रः समारोदिति असौ दुनिवारं भयाद्भयं जल्पति ॥ १९५ ॥ विज़ुभते इति ॥ यः श्वा विजृभते मुंभां करोति नासिकाग्रं च लेढि यश्च भषणः स्वांगभंगं करोति स पुंसां लाभहानि प्रकरोति श्वांतरलंघनेन च मृत्युप्रदोभवति ॥१९६॥ विधूतकणे इति ॥ चेत्पाथः पुरस्तादने विधूतकर्णे शुनि वेश्मनि विशेत्तदा यमर्थमुपायं प्रत्यागतः पापाः राजकीयाः पुरुषाः तं समस्तमर्थ हरति । क्वचित्समुपाज्येत्यपि पाठः ॥ १९७ ॥ गताविति ॥ गतौ अथ वा निवृत्तौ श्वयुद्धं भवति तदा युद्धाय बंधाय वधाय च स्यात्।यदि युद्धसक्ताः ॥भाषा ।। हुये भी वांछित कार्य नाशकू प्राप्त करे ॥ १९४ ॥ पराङ्मुखेति ॥ जो श्वान पीठो मुख करके पृथ्वीकं खोदतो होय अथवा जो पुरुष बैठो होय वाके अगाडी ठाढो होय मुख भरयो होय ऐसो श्वान रोवे तो दुर्निवार भयते भी भय होय ॥ १९५ ॥ विजंभत इति ॥ जो श्वान जंभाई लेवे और नासिकाके अग्रभाग चाटतो होय अपने अंग• भंग करतो होय तो वो इवान पुरुषनकू लाभकी हानि करै, अपने बीचमें उलांग जाय तो मृत्युको देबेवारो जाननो ॥ १९६ ॥ विधूतेति ॥ गमनकर्ता पुरुषके अगाडी दोनों कान हलाय करके खान घरमें प्रवेश कर जाय तो जा धनकू कमाई करके पीलो आयो का समस्त धनकं पापरूप राजकाजके पुरुष हर लेवें ॥ १९७ ॥ गताविति ॥ गमन समयमें वा प्रवेश सनयमें श्वान युद्ध करै तो युद्धबन्धन, वध इनके अर्थ जाननो जो युद्धमें आस. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596