Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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(४२०) वसंतराजशाकुने-सप्तदशो वर्गः।
॥टीका॥ कट्या उपरि आरोहंती वस्त्रलाभं ब्रूते ११ उत्तमांगे नाभौ पतिता पुत्रलाभमभिधत्ते १२ वामजंघोपरि पतत्यां पुत्री स्यात् १३ निद्रामध्ये पतंती षण्मासमध्ये मरणं ब्रूते १४
॥ इति शरीरचेष्टा ॥ नूतनगृहे प्रविशतां मध्ये आत्मनो मृत्युमाख्याति १ अथ वा मृता सती कीटिकावेष्टिता दृश्यमाना कुटुंबरोगं ब्रूते २ द्वितीयया पल्लग मिलंती प्रियदर्शनं ब्रूते३ आत्मनो गृहे प्रविशंती बहिनिःसरंती भयाय स्यात् ४ नीचे स्थानके गच्छंती राजभयं कथयति ५ गृहे प्रविशितां अग्रे भूयः चलंती निर्भयमर्थलाभं व्रत ६ नि. जस्थाने यांती अर्थहानि ब्रूते ७ जलस्थाने यांती अमिभयं कथयति ८
॥ इति पल्लीगमनचेष्टाफलम् ॥ पल्ली वस्तुसंभालनाय गच्छता यदि पाषाणोपर्यारोहति तदा तद्वस्तु पाषाणीभवति १
॥ भाषा॥ कटिके ऊपर पडके चढजाय तो वस्त्रको लाभ करै ॥ ११ ॥ स्त्रीपुरुषके उत्तम अंगपै पडै तो अथवा नाभिपै पडै तो पुत्रको लाभ होय ॥ १२ ॥ बाई जंघाके ऊपर पडै तो पुत्री होय ॥१३॥ जो निद्रामें सूतेके ऊपर पड़े तो छः महीनाके मध्यमें मरजाय ॥ १४ ॥
॥इति शरीरचेष्टाफलम् ॥
जो नवीन घरमें प्रवेश करें उनकू वा घरमें पल्ली दीख जाय तो वो अपनी मृत्यु जाननी ॥ १ ॥ अथवा मरी हुई पल्ली चींटी कीडा वाके लिपट रहे होंय वो दीख जाय वा नये घरमें तो कुटुंबकू रोग जाननो ॥ २ ॥ जो वा नये घरमें पल्ली दूसरी पल्ली करके मिलती दीखै तो कोई प्रियको दर्शन जाननो ॥ ३ ॥ अपने घरमें प्रवेश करके बाहर निकस आवे तो वा अपुन घरमें घुसे वो बाहर निकस आवे तो भयके अर्थ जाननो ॥४॥ नीचे स्थानपै गमन करती दीखै तो राजभय जाननो ॥ ५ ॥ घरमें प्रवेश करबेवालेनके अगाडी होयके चलै तो निर्भय अर्थको लाभ होय ॥ ६ ॥ नीचस्थानमें गमन करे तो अर्थकी हानि करै ॥ ७ ॥ जल. स्थानमें गमन करे तो अग्निको भय करे ॥ ८॥
॥ इति पल्लीगमनचेष्टाफलम् ॥ जो पल्ली वस्तुकू संभाल करबैकू जांय उनकू पाषाणके ऊपर चढती दीखे तो वो वस्तु
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