Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पिंगलारुते चतुःसंयोगफलप्रकरणम् । (३५१) भूम्याप्यहौताशननाभसाख्यैः स्यातां रुतैर्लाभसुहृद्विरोधौ । लाभः प्रवासे कलहः सहायैः सहाशिरोगो यदि वा समस्तैः ॥ १०२ ॥ भूवारिजाकाशहुताशशब्दान्यथाक्रमं चेद्विदधाति पिंगः ॥ धनानि सिध्यंति तदीप्सितानि नारीनिमित्तं कलहं तथाहुः ॥ १०३॥ क्षोणीहुताशांबरवारिनादा मित्रादनाप्तिं रतिकार्यखेदम् ॥ यात्रासु सिद्धि विजयं रणेषु . पुंसां प्रयच्छंति च राज्यलाभम्।।१०४॥धरानभोऽभोगिरवैश्चतुर्भिः पिंगेक्षणेनाभिहितैः क्रमेण ॥ यात्रासु सिद्धिविजयो रणेषु श्रेयो भवेदन्यसमीहितेषु ॥१०॥
॥ टीका ॥ भूमीति ॥ भूम्याप्यहौताशननाभसाख्यैः रुतैलभिमुहृद्विरोधौ स्याताम् प्रवासे लाभः सहायैः सह कलहः यदि वा समस्तैः सह अक्षिरोगः ॥ १०२ ॥ भवारीति ॥ चेपिगःभूवारिजाकाशहुताशशब्दान् भूश्च वारि च ताभ्यां जातौ तौ च तो आकाशहुताशशब्दौ च तान्विदधाति तदा धनानि तदीप्सितानि सिध्यति नारीनिमित्तं कलहं तदाहुः ॥ १०३ ॥ क्षोणीति ॥ क्षोणीहुताशांबरवारिनादाः मित्राद्धनाप्ति रतिकार्यखेदं यात्रासु च सिद्धिं रणेषु विजयं पुंसां प्रयच्छंति तथा राज्यलाभम् ॥ १०४ ॥ धरेति ॥ धरानभोभोगिरवैः चतुर्भिः क्रमेण पिंगेन अभिहितैः प्रतिपादितैः यात्रामु सिद्धिर्भवति रणेषु विजयश्चान्यसमीहितेषु श्रेयः।।
भाषा ॥ इनके शब्दनको कर्ता होय तो स्त्रीके निमित्त सुहृजनन सहित विग्रह होय. और ता विग्रहमें निश्चयकर पराजय होय ॥ १०१ ॥ भूमीति ।। पिंगटके भूमि. जल, अग्नि, आकाश इन शब्दनकरके लाभ और सुहृदनो विरोध होय. और परदेशमें लाभ और सहायानकरके कलह वा समस्तनकरके कलह और नेत्रनमें रोग ये होय ॥ १०२ ॥ ॥ भूवारीति ॥ जो विहंग पक्षी पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि इन शब्दनकू क्रमकरके करै तो बांछित धनप्राप्त होय. और स्त्रीके निमित्त कलह होय ॥ १.०३ ॥ क्षोणीति ॥ जो पिंगलके पृथ्वी, अग्नि, आकाश, जल ये शब्द होय तो मित्रले धनकी प्राप्ति और रतिका
में ग्वेद होय, और यात्रानमें सिद्धि, संग्राममें विजय और राज्यको लाभ ये पुरुषनक होय ॥ १०४ ॥ धरेति ॥ गिल के कटकरके कहे हुये पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि ये चार शब्द तिनकरके यात्रानमें सिद्धि, र विनत्र और कार्यनमें श्रेय हाय ॥१०५ ॥
For Private And Personal Use Only