Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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( १९०). वसंतराजशाकुने-ससमो वर्गः। यात्रा स्थितस्यागमनं गतस्य भविष्यतः संप्रति किनवेति।। प्रत्यक्षदेवीविरुते क्रमेण निरूप्यते निश्चितकार्यभागम्२९२ यात्रा भवित्री मम किं न वेति प्रश्ने कृते स्याद्मनाय तारा।। शाखां चलंतीमथवाधिरूढा वामा तु यात्रां प्रतिषेधयित्री ॥ ॥ २९३ ॥ दूरं गतस्यागमनाय तारा यद्वोपविष्टा प्रचले प्रदेशे ॥ पुंसः स्वगेहागमनोत्सुकस्य श्यामांतरायं विदधाति वामा ॥२९४॥ विधायशब्दं यदि दक्षिणास्यादायाति पांथस्तदवाप्तवित्तः ॥ श्यामास्थिरा तिष्ठति मौनिनी या सा . वक्ति गत्यागमयोः स्थिरत्वम् ॥ २९५॥
॥ टीका॥ यात्रेति ॥ स्थितस्य यत्रागतस्यागमनं संप्रति भविष्यतः नवेति प्रश्ने प्रत्यक्षदेवी विरुते निश्चितकार्यजातं तनिरूप्यते ॥ २९२ ॥ यात्रेति ॥ मम यात्रा भवित्री न वेति प्रश्नद्वयं एकवारमन्वयव्यतिरेकाभ्यां प्रश्ननिर्णेतुः संदेहास्पदत्वं स्यादिति प्रश्ने कृते चेतारा स्यातदागमनाय यदि वेति पक्षांतरे चलंती शाखामधिरूढा तारा भूत्वा तदा शीघ्रं गमनं वामा तु यात्रा प्रतिषेधयित्री स्यात् ॥ २९३ ॥ दूरमिति ॥ कदागमिष्यतीति प्रश्ने यदि तारा स्यात्तदा दूरगतस्यागमनाय भवति । यद्वा तारा भूत्वा प्रचले पदार्थे उपविष्टा तदा शीघ्रगमनं स्वगेहागमनोत्सुकस्य पुंसः वामा श्यामा अंतरायं विदधाति ॥२९४।। विधायेति ॥ यदि शब्दं विधाय
॥भाषा॥ .
॥ यात्रेति ॥ यात्राकू गयो ताको आगमन और घरमें स्थित ताको गमन होयगो वा नहीं होयगो वा कब होयगो ऐसा प्रश्नपोदकाकै शब्दमें निश्चय होयहै सो निरूपण करहैं ॥ ॥ २९२ ॥ यात्रेति ॥ मेरी यात्रा होयगी या नहीं होयगी ये दो प्रश्न करै तब जो श्यामा तारा होय तो गमनंके अर्थ होय और पवनादिक करके चलरही वा हलरही शाखा ता पै चढजाय तारा होयकरके तो शीघ्रगमनकरै. और वामा तो यात्रामें निषेधकर्ताहै ॥ २९३ ॥ दूरमिति ।। कब आवेगो ऐसो प्रश्नकरै तब जो पोदकी तारा होय तब दूरगयेको आगमन होय अथवा तारा होयकरके हलते चलते पदार्थपै बैठजाय तो शीघ्र आगमन होय. जो अपने घरकू आयबेमें उत्साह करतो होय वा पुरुषके श्यामा वामा होय तो विघ्न वा ढील जाननो ।। २९४ ॥ विधायेति ॥ जो पादकी शब्दकरके दक्षिणा होय तब देशगयो धन.
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