Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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( १५० )
वसंतराजशाकुने- सप्तमो वर्गः ।
निम्नतो व्रजति या समुन्नतं पोदकी भवति सा महाफला ॥ व्यत्ययाल्लघुफला समात्समं याति या समफला भवेत्तु सा ॥ १५० ॥ भयापहा वामरवा वराही प्रदक्षिणा भूरिफलं ददाति ॥ भयप्रदा दक्षिणतः सशब्दा कुर्यान्मृतिं वामगतिः प्रयातुः॥ १५१ ॥ सव्यापसव्ये युगपल्लयंत्यौ श्यामे प्रशस्ते खलु तोरणाख्ये।। वामस्थिता दक्षिणकायचेष्टा वृद्धयै फलस्य द्रुममाश्रयंती ॥ १५२ ॥
॥ टीका ॥
देवी नालोक्यते यदि निवृत्तौ चेत्तारा स्यात्तदा अनर्थैकफलेति अनर्थः कष्टं तदेकं फलं यस्याः सा तथा केषां नराणां तु पुनरर्थे वामा यदि एति तदा अभीष्टार्थं फलं ददाति ॥ १४९ ॥ निम्रत इति ॥ या पोदकी निम्नतः नीचमदेशात् समुन्नतं उच्चप्रदेशं व्रजति सा महाफला भवति व्यत्ययाद्याति वैपरीत्यात्समुन्नतात्स्थानानिम्नं गच्छतीत्यर्थः । सा लघुफला तुच्छफला भवति । तु पुनः या समात्समं स्थानं याति सा समफला भवेत् ॥ १५० ॥ जांघिकशकुनमाश्रित्याह ॥ भयेति ॥ प्रयातुः वराही देवी वामरवा वामशब्दा भयापहा भयहर्त्री स्यात् । सा चेत्प्रदक्षिणा तारा वराही भूरिफलं ददाति । पुनर्दक्षिणतः सशब्दा भयप्रदा भवति । सा चेद्रामगतिस्तदा प्रयातुर्मरणं कुर्यात् ॥ १५१ ॥ सव्यापसव्य इति ॥ यदि सव्यापस
॥ भाषा ॥
होती समयभी न दीखे तो
समयमें कहूं भी तोरण भागमें पोदकी नहीं दीखे और निवृत्त अनर्थ कष्ट होय. फिर वामा होय तौभी अभीष्ट अर्थ फल देवे ॥ १४९ ॥ निम्नत इति ॥ ॥ जो पोदकी नीचे स्थलसूं ऊंचेपे गमन करे वो महाफलकी देनेवाली है, और जो ऊंचेपै ते नीचे को गमन करे तो तुच्छफलकी देबेवाली जाननी फेर जो समस्थान ते समस्थानकूं जाय तो सफल होय ॥ १५० ॥ भयेति ॥ गमनकरबेवाले पुरुषकूं पोदकी बांई बोले तो भयकूं दूर करे. और जयं करे, और वो दक्षिण भागमें होय तो बहुत फल देवे. फिर दक्षिणमाऊं ते शब्द करे तो भयकी देबेवारी होय. और वोही वामगति होय तो गमनकर्ता कूं मरणकरे ॥ १५१ ॥ सव्यापसव्येति ॥ जेमनेमाऊं और बांई माऊं भी संग बोलती होय तो बहुत शुभ जानना, जो तोरणमें बोलती होय तो और वामभागमें स्थित होय जेने अंग में चेष्टा करती होय और वृक्ष पै बैठी होय तो कार्य फलकी वृद्धि करें ॥ १५२ ॥
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