Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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पोदकीरुते यात्रामकरणम्। प्रदक्षिणश्चेदमने विहंगो निवर्तने वामगतिविहंगी । अत्युत्तमा स्यात्तदभीष्टसिद्धिःस्यान्मध्यमाजल्पति वैपरीत्यात्।। ॥१४७॥ तारा भवत्यादिमतोरणांते वामा ततश्चेत्र गुणो न दोषः॥ तारोद्धृते द्वे अपि ते विहाय तस्मान्मनुष्यैरपरा गवेष्या ॥१४८॥ आलोक्यते कापि न तोरणांते श्यामा निवृत्तौ यदि चोग्रतारा। तत्स्यादनथै कफला नराणांवामात्वभीष्टार्थफलं ददाति ॥ ११९ ॥
टीका ॥
चिदूनं फलं ददातीत्यर्थः।यतः वामां गतिं प्रत्यधिका विहंगी वर्तते प्रदशिणां गति प्रत्यधिको विहंगो वर्तते ॥ १४६ ॥ प्रदक्षिणेति ॥ चेद्गमने शकुनावलोकने प्रदक्षिणस्तारः विहंगम: स्यात् । पुनर्निवर्तने विहंगीवामगतिर्भवति तदाभीष्टसिद्धिरत्युत्तमा स्यान्जल्पति । पुनःवैपरीत्यादभीष्टसिद्धिर्मध्यमा स्यादिति जल्पति कथयति। वैपरीत्यं तु प्रथमं तारा विहंगी स्यात् ततो निवृत्तो वामः विहंगः स्यादिति१४७॥ । तारेति॥ आदिमतोरणांते तारा भवति ततश्चेदामा भवति तदा न गुणःन दोषः तारते दक्षिगवामेते द्वे विहाय त्यक्त्वा तस्मान्मनुष्यैरपरा गवेष्या गवेषणीया विलोकनीया स्यात् ॥ १४८ ॥ आलोक्यत इति ॥ कापि तोरणांत श्यामा
॥ भाषा॥
श्रेष्ठ और जो प्रथम पुरुष दीखे तो वा स्त्रीसू कछुक न्यून फल देव है, और जो स्त्रीको वामभागसे गति अधिक होय और पुरुषकी गति जेमने भागमें अधिक वर्तती होय तो पूर्व कह्यो फल योग्य जाननो ॥ १४६ ॥ प्रदक्षिणति :॥ जो गमनसमयमें शकुन देखती - मयमें पुरुषपक्षी दक्षिणावर्त होय और फिर निवर्त होती समयमें स्त्री विहंगी वाई. होय तो बांछित सिद्धि अतिउत्तम होय. और जो विपरीत करके होय अर्थात् गमनमें तो प्रथम विहंगी स्त्री होय जेमनी, ओर वहांसे निवृत्त होती . समयमें पुरुष पक्षी बांयों होय तो मध्यमा जाननो ॥ १४७ ॥ तारेति ॥ जो प्रथम तोरणके अंतमें तारा दक्षिणवर्ती होय तापीछे वामा होय वाको गुणभी नहीं, और दोषभी नहीं, तातें मनुष्य उन दोनोंनकू छोडकरके और तारा शकुनकू ढूंढनो योग्य है ॥ १८ ॥ आलोक्यत इति ॥ शकुनदेखती
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