Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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पोदकीरुते यात्राप्रकरणम् । या ब्रह्मपुत्री गमनोधतानामग्रे वजित्वाऽभिमुखी समेति ॥ अदक्षिणा कार्यविनाशनाय स्थादक्षिणा सा द्रविणाप्तिहेतुः।। ॥ १६७ ॥ भूत्वा वितारा परिगृह्य भक्ष्यं प्रदक्षिणेनाभ्युपगम्य देवी ॥ मनोरमं स्थानकमाश्रयंती हत्वापदं संपदमादधाति ।। १६८ ॥ निमज्य धूल्यां यदि शुकृपक्षा विधाय चेष्टां यदि वा विदुष्टाम् ॥ प्रयाति तारा विपदं विधाय क्षणन लक्ष्मी तदुपादधाति ॥ १६९॥ दिकालचेष्टानिनदस्थितीनां मध्याद्भवेदेकतरेण दीप्ता॥ भयंकरी दक्षिणगापि दुर्गा स्यावामगा मृत्युविधायिनी तु ॥ १७० ॥
॥ टीका ॥ रणाय युद्धाय स्यात् । एवंविधा वामा अवश्यं गंतुर्मरणाय स्यात् ॥ १६६ ॥ या ब्रह्मपुत्रीति ॥ या ब्रह्मपुत्री देवी गमनोधतानामग्रे जित्वा अभिमुखी समेति ततः अदक्षिणा वामा स्यात्तदा कार्यविनाशनाय भवति सा चेदक्षिणा स्यात्तदादविणाप्तिहेतुःस्यादित्यर्थः॥दविणंधनं तस्य प्राप्तिः तस्या हेतुः कारणम्। 'स्वमृक्थं द्रविणं धनम्' इति हैमः॥ १६७ ॥ भूत्वेति॥ प्रथमं वितारा वामा भूत्वा भक्ष्यं परिगृह्य गृहीत्वा पुनः प्रदक्षिणेनाभ्युपगम्य मनोरमं स्थानकमाश्रयन्ती देवी आपदं हवा संपदमादधाति ॥ १६८ ॥ निमज्येति ।। यदि शुक्लपक्षा धूल्यां निमज्य स्नात्वा यदि वा दुष्टां चेष्टां विधाय तारा प्रयाति तदा विपदं विधाय क्षणेन लक्ष्मीमुपाद. धाति ।। १६९ ।। दिक्कालेति ॥ यदि दिकालचेष्टानिनदस्थितीनां पूर्वोक्तानां
॥ भाषा॥
होय तो अवश्य गमनकर्ताकू मृत्यु करे ॥ १६६ ॥ या ब्रह्मपुत्रीति ॥ ब्रह्मपुत्री जो पोदकी 'गमनकरनेवाले पुरुषके अगाडी जायके फिर पीछे वाके सम्मुख आय फिर वामा होय जाय तो कार्यको नाश करै. और जो दक्षिणभागमें आय जाय तो धनप्राप्ति करावे ॥ १६७ ॥ भूत्वेति।। प्रथम वाम होय कर भक्ष्यग्रहण करके फिर दक्षिणभागमें जाय · सुंदर स्थानमें जाय बैठे तो आपदा दूर करके संपदा करे ॥ १६८ ॥ निमज्येति ॥ श्वेत जाके पंख ऐसी पोदकी धूलमें स्नान करके बुरी चेष्टाकरके जो दक्षिणमें चली जाय तो आपदा दे करके क्षणमें ही लक्ष्मी प्राप्त करे ॥ १६९ ॥ दिक्कालेति ॥ जो - दिशा काल चेष्टा नाद स्थिति ये पहले कहे हैं, इनमेंसू एकप्रकारकी दीप्ता होय फिर वो दक्षिणभागमें भी होय तो भय कर
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