Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ११५)
दिग्विभागचक्रम् ।
॥ दीका ॥
param
सिद्धिः (॥६॥) विघटितमर्थ घटयति संशितं वस्तु साधयत्यचिरात् ॥ प्रस्थानयति च नीतं प्रमाणकोणोदयः शकुनः ॥ ७ ॥ प्रत्यूहोपहतानां दिग्मूढानामतिभ्रमार्तानाम् । प्रायः प्रमाणशकुनः साधीयान्कांदिशीकानाम् ॥ ८॥ रिक्तीकरोति पूर्ण रिक्तं पूर्णी करोति नियमेन ॥ प्रायः स्वरूपदीप्तः शकुनः खरकप्रदेशोत्थः ॥९॥ उत्साहोज्झितमनसां राज्ञां परिमोषिणां जि- ॥दिग्विभागचक्रम् ।। गीषूणाम् । निरुपायोदिनानां साधुः खरके
अग्नि सदा शकुनः ॥१०॥ चौर्यावस्कंदाहतपरस्वसंभृतप्रदेशानाम् । सद्यो रिक्तीकरणं खरके शकुनं समुद्भूतम् ॥ ११ ॥ भूमिं गतोपि |
निवास जीवति निगडैरपि संयतो विमुच्येतायुध्यते सन्नद्धाः क्रोधानोदायुधायोधाः॥१२॥ शकटारोपितभांडोप्युच्चलति नैव जातुकामोपि॥
इशान
मृन्द
ध्रुव
द्रष्ट
खरक
प्रमाण
भाषा॥
चार चार घडीका कहा है सो बत्तीसके दिनमानसें कहा है. दिनमान रात्रि कम जास्ती होवे तो सूर्यभोग चार घडीमें कमजास्ती करना ऐसा अहोरात्रिमें दग्धादिविभाग जानना, और विशेष यह है कि, देखनेवालेका मन चञ्चल व्यग्र होवे तो प्रदीप्त दिशाका शकुन शुभ फल देवेगा,
और देखनेवालेका चित्तस्थिर शांत होवे तो शांत दिशाका शकुन शुभ फल देवगा. अब उदाहरण बताते हैं-कोई शकुन देखनेवाला पुरुष खेदयुक्त अपने स्थान पै अप्रसन्न चित्त बैठाहै इतनेमें दक्षिणदिशामें श्यामापक्षिणीका शब्द भया तब सूर्योदयादिष्टवटी १३ प. १५ थे, उस ऊपरसे वो दिशा निवास संज्ञा, और सूर्यके आगमन होनेके लिये धूमित भई तब दिशा प्रदीप्त भई और देखनेवाला चिंतायुक्त है तो शकुन शुभफल दायक होवेगा, भयचिन्ता दूर होवैगी, रोगीकी चिन्ता होवे तो मृत्यु जानना, और शकुन देखनेवालेका चित्त शांत होवे तो विलंबसे कार्यसिद्ध होवेगा, सो श्लोक ॥ यस्योटपि वसतौ ॥ इत्यादि स्पष्टार्थ आगे दिखाते हैं इति ॥ २ ॥ अब मूलादिक दिशाका फल लिखते हैं प्राच्येति पूर्वमूल दिशामें प्रदीत शकुन सुनै तो कार्य अपने हाथमेंसे गया जानना ॥ १ ॥ पश्चिममूलेति ॥ प.
For Private And Personal Use Only