Book Title: Vasantraj Shakunam
Author(s): Vasantraj Bhatt, Bhanuchandravijay Gani
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
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पोदकीरुतेऽशुभचेष्टाप्रकरणम्। (१३१) अन्यत्र यानादधिवासितस्य सिद्धयुन्मुखं यात्यपरत्र कार्यम् ॥प्रदीप्तयानात्पुनरापतंति संग्रामवित्तक्षयकार्यनाशाः॥ ॥८७॥ दीप्तस्थिते पक्षिणि देशभंगो दुष्टप्रदेशोपगते च दुःखम् ॥ आसीनपक्षिप्रपलायिते तु भवेदिमिश्रः सुखदुःखभावः ॥८८॥ स्त्रीनाशचित्तस्थितकार्यनाशौ स्यातां रिरंसापरिहारभावात् ॥ भुजंगवहिप्रभवे कुमार्या भये भयं भावि कुतोप्यवश्यम् ॥ ८९॥
॥ टीका ॥
राजयः स्यात् । तदीये विजयेजनस्य विजयः स्यात् ॥८६॥अन्यत्रेति ॥ अधिवासितस्य शकनार्थ निमंत्रितस्य अन्यत्र यानात् सिद्धगुन्मुखं कार्यमपरत्र यातिापुनःप्रदीतयानासंग्रामवित्तक्षयकार्यनाशा आपतंति समुपतिष्ठते संग्रामश्च वित्तक्षयश्च कार्य नाशश्च संग्रामवित्तक्षयकार्यनाशाः इतरेतरद्वंद्वः।।८७॥दीप्तेति। पक्षिणि विहंगे दीप्त. स्थिते देशभंगः स्यात् दुष्टप्रदेशोपगते पक्षिणि दुःखं स्यात्।आसीनपक्षिप्रविलंबिते च पक्षेवाप्रपलायितेअथवा आसीनःउपविष्टोय पक्षी तस्यप्रपलायनेनसुखदुःखयोर्विमि श्रभावौ भवतः॥८॥स्त्रीति॥रिरंसापरिहारभावादितिरंतुमिच्छारिरंसातस्या परि हारभावःपरित्यागभावस्तस्मात्परित्यागास्त्रीनाशचित्तस्थितकार्यनाशौस्यातांभवेतां स्त्रीनाशश्चचित्तस्थितकार्यनाशश्वस्त्रीनाशचित्तस्थितकार्यनाशौइतरेतरद्वंदः।कुमार्याः देव्याभुजंगवहिप्रभवे भुजंगश्च वह्रिश्चइतरेतरद्वंद्वातयो प्रभवेसजातेभयकृतोऽप्यव
॥ भाषा ॥
और संग्राममें जय पोदकीको होय तो मनुष्यको भी जय होय ॥ ८६ ॥ अन्पत्रेति ॥ पोदकी कहूं बैठी होय और वहांसे उडके अन्यत्र गमन करजाय तो मार्गी जहां जातो होय वहांसू और जगह जाय तब कार्यसिद्धि होय और प्रदप्तिदिशामें जायकर फिर पीछे आवे तो संग्राम करावे धनको क्षय करावे कार्यको नाश करे ॥ ८७ ॥ दीप्तति ॥ पक्षी दीप्तादिशामें स्थित होय तो देशभंग होय और दुष्टदेशमें बैठी होय तो दुःख होय और जो पक्षी बैठी होय फिर पंख लंबे कर दे अथवा भाज जाय तो सुख दुःख निलवां होय ॥ ८ ॥ स्त्रीति ॥ और कुमारी जो पोदकी ताके रमणकी इच्छा होय किर परित्याग कर दे तो स्त्रीको नाश कर और चित्तमें स्थित जो कार्य ताको नाश कर और सर्प अग्नि इत्यादिकन करके अवश्य भय हो
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