Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ ,, 240 VI. 61.20c VII. 2.320 , 3.IC , 3.32c अचूचुदत्सारथिमुलदन्पुनः III. 22.24c (अ)चेष्टमानो गतः क्षयम् II. 63.49b अचेष्टौ मन्दनिःश्वासौ VI. 46.4a अच्छल मित्रभावेन IV. 33.61c [अ]च्छेद्याभेद्यत्वमेव च III. 3.6d अच्छिन्दन्तां सुसंहृष्टौ III. 70.8c अजमव्यक्तरूपिणम् VII. 6.2b अजयत्स्वेन वीर्येण I. 37.29c अजय्यः शाश्वतो ध्रुवः VI. III.13b अजश्व सुव्रतश्चैव II. II0.34a अजस्य चैव धर्मात्मा II. II0.34c अजस्रं यत्र कुत्र क: VII. 20.10b अजातव्यअनः श्रीमान् III. 38.14d मजाइशरथोऽभवत् I. 70.43b अजानतः शयानस्य VII. 55.19a अजानतां नः सर्वेषाम् IV. 51.9a भजानन्तं प्रजानन्ती II. 72.14c मजानमिव किं वीर VI. 108.IC मजानमिव जिज्ञासुः II. 2.23c अजानमिव मच्छीलम् VI. 47.18c अजानंस्ता महौषधी: VI. IOI.32f बजामुखीहस्तिमुखीः V. 17.14c अजामुख्या यदुक्तं वै V. 24.44a अजायत समं तेन I. 17.10a वाधिक च विविधम् VII. 39.10c अजितः खगग्विष्णुः VI. II7.15c भजितं नरशार्दूल III. 43.19c बजिनानां च संचयान् IV. 50.37b नोत्तरसंस्तीर्ण II. 88.4a सारलाhण मया नृशंसा II. 38.6a अजेयः सत्यवाक्शूरः V. 58.74a अजेयं समरे घोरम् III. 32.6c अजेयाः शत्रुहन्तारः VII. 5.14c अजेयो भविता पुत्रः VII. 36.22c अजेयो राघवो युद्धे III. 59.15c अज्ञातं नास्ति ते किंचित् VI. 17.35a अज्ञातरूपैः पुरुषैः VI. 17.59a अज्ञानाच्छब्दवेधिना II. 62.4d अज्ञानात्तु प्रविष्टाः स्म IV. 57.16c अज्ञानात्तु हतो यस्मात् II. 64.55a अज्ञानादपि यत्कृतम् II. 39.38b अज्ञानादवमन्येरन् III. 64.54c अज्ञानादुपसंपन्ना II. I2.80c अज्ञानाद्धर्षिता विप्र VII. 30.40a अज्ञानाद्धि कृतं यस्मात् II. 64.25a. अज्ञानाद्भवतः पुत्रः II. 64.1ga. अज्ञानाद्यदि वक्ष्यति H. 30.4b अज्ञानाद्यदि वा ज्ञानात् III. 54.17a अज्ञानाद्येन मे पिता II. I8.IIb अज्ञानादक्षिमिः क्रोधात् V. 64.6c अज्ञानाद्राक्षसाधम VI. I03.IIb अज्ञानालाघवान्मया IV. 12.34b अञ्जनादपि निष्क्रान्तः I. 6.24c अञ्जनादभिनिष्क्रान्तः VII. 5.5a अञ्जनाम्बुदसंकाशाः IV. 37.5a अञ्जनाया वचः श्रुत्वा IV. 66.17a अञ्जनायास्तमाख्याय VII. 36.26c अञ्जना सुप्रजा येन VI. 14.18a अञ्जनेति परिख्याता IV. 66.8c अञ्जने पर्वते चैव IV. 37.5c अञ्जलिं कुर्मि कैकेयि II. 12.36a अञ्जलिं प्रतिगृह्णन्तीम् II. 12.48c अञ्जलिं प्राङ्मुखः कुर्वन् V. I.9a अञ्जलिं प्राङ्मुखः कृत्वा VI. 21.IC 1 अञ्जलि राघवः कृत्वा II. 58.14c For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 182