________________
श्री उपासकदशांग सूत्र
में, ववहारेसु - व्यवहारों में, आपुच्छणिज्जे पूछने योग्य, पडिपुच्छणिज्जे - बार बार पूछने योग्य, कुडुंबस्स - कुटुम्ब का, मेढी - मेढि - मुख्य केन्द्र, पमाणं - प्रमाण-स्थिति स्थापकप्रतीक, आहारे - आधार, आलंबणं आलम्बन, चक्खू - चक्षु-मार्ग दर्शक, मेढिभूए-मेढी भूत सव्वकज्जवड्डावर सर्वकार्य वर्धापक - सभी कार्य आगे बढ़ाने वालें ।
भावार्थ - वे आनंद गाथापति बहुत से राजा ईश्वर यावत् सार्थवाहों के द्वारा बहुत से कार्यों में, कारणों में, मंत्रणाओं में, कौटुम्बिक अनुष्ठानों में, गोपनीय कार्यों में, रहस्यमय पेचीदगियों में वस्तु तत्त्व का निर्णय करने में, विवादित विषयों का न्याय करने में एक बार तथा बार-बार पूछे जाने योग्य थे। उन्हें दूसरे लोग ही पूछते हों और घर में कोई कद्र न हो ऐसी बात नहीं थी। अपने स्वयं के कुटुम्ब के भी वे मेढी -प्रमाण आधार, आलंबन और चक्षु थे। वे मेढीभूत, प्रमाणभूत, आलंबनभूत, चक्षुभूत थे। अधिक क्या कहा जाय सभी कार्यों में उनके द्वारा अच्छी सलाह दिए जाने से वे कार्य बढ़ोत्तरी को प्राप्त होते थे ।
८
-
-
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में आनंद गाथापति की सामाजिक प्रतिष्ठा तथा उनके आदरणीय प्रभावशाली व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है। आनंद गाथापति ने केवल अपने परिवार के लिए ही नहीं अपितु अन्य लोगों के लिए भी मेढिभूत ( केन्द्र बिन्दु), आधारभूत, प्रमाणभूत, आलंबनभूत और चक्षुभूत थे । वे सभी के लिए पूछने एवं सलाह लेने योग्य थे ।
-
प्रस्तुत सूत्र प्रयुक्त 'कज्जेसु' आदि शब्दों के विशिष्ट अर्थ इस प्रकार हैं जो आनंद गाथापति की विशिष्टताओं को प्रकट करते हैं -
-
कज्जे (कार्येषु) किसी भी प्रकार के सामान्य कार्यों में यह कार्य कैसे करना ? यह पूछना।
कारणेसु ( कारणेषु) - 'अमुक कार्य ऐसे क्यों बना?' 'इसके क्या कारण थे ?' अथव 'अमुक कार्य के बनने बिगड़ने के कारण क्या हो सकते हैं? इस प्रकार कारणों के विषय में पूछना ।
Jain Education International
-
मंतेसु (मंत्रेषु) - अमुक लड़के या लड़की का संबंध करना है सो अमुक ठिकाना कैसा रहेगा? अमुक लड़का ठीक रहेगा या गलत इस प्रकार की गोपनीय सलाहें 'मंतेसु' के अंतर्गत आती है।
कुटुंबे (कुटुम्बेसु) - पारिवारिक कार्यों के विषय में सलाह-मशविरा लेना । अपने परिवार वाले तो आनंद जी को हर कार्य में पूछते ही थे पर दूसरे लोग भी उनसे सलाह लेते रहते थे ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org