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चौथा अध्ययन - श्रमणोपासक सुरादेव - रोगों की धमकी
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अकारिए- अकारक - भोजन में अरुचि या भूख न लगना, अच्छिवेयणा - आंख दुःखना, कण्णवेयणा - कान की वेदना, कडुए - कण्डू-खुजली, उदरे - उदर रोग-जलोदर आदि पेट की बीमारी, कोढे - कुष्ठ-कोढ। ____भावार्थ - तब उस देव ने सुरादेव श्रमणोपासक को चौथी बार भी इस प्रकार कहा - हे मृत्यु को चाहने वाले सुरादेव श्रमणोपासक! यावत् तुम अपने व्रतों का त्याग नहीं करोगे तो मैं आज ही एक साथ तुम्हारे शरीर में इन सोलह महारोगों का प्रक्षेप करता हूं - १. श्वास २. खांसी ३. ज्वर ४. दाह ५. कुक्षि शूल ६. भगंदर ७. बवासीर ८. अजीर्ण ६. दृष्टिशूल १०. मस्तकशूल ११. अकारक १२. आंख की वेदना १३. कान की वेदना १४. खाज १५. उदर रोग और १६. कोढ, जिससे तू आर्तध्यान तथा विकट दुःख से पीड़ित होकर अकाल मृत्यु को प्राप्त होगा। ___तए णं से सुरादेवे समणोवासए जाव विहरइ। एवं देवो. दोच्वंपि तच्वंपि भणइ जाव ववरोविज्जसि।
- भावार्थ - उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक सुरादेव धर्मध्यान में रत रहा तो उस देव ने दूसरी तीसरी बार पुनः उसी प्रकार कहा यावत् तुम असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे।
तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था अहो णं इमे पुरिसे अणारिए जाव समायरइ, जेणं ममं जेट्ठ पुत्तं जाव कणीयसं जाव आयंचइ, जेऽवि य इमे सोलस रोगायंका तेऽवि य इच्छइ मम सरीरगंसि पक्खिवित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए त्तिकटु उद्धाइए। सेऽवि य आगासे उप्पइए, तेण य खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए।
भावार्थ - उस देव द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार इस प्रकार कहे जाने पर सुरादेव श्रमणोपासक विचार करने लगा - यह कोई अनार्य (अधम) पुरुष है जिसने मेरे ज्येष्ठ पुत्र आदि को यावत् मार कर मेरे शरीर को सींचा है और मेरे शरीर में सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर देना चाहता है अतः मेरे लिये यही श्रेयस्कर है कि मैं इस पुरुष को पकड़ लूं। ऐसा विचार कर सुरादेव आवेशपूर्वक उसे पकड़ने को झपटा तो वह देव आकाश में उड़ गया और उसके हाथों में पौषधशाला का खम्भा आ गया। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा।
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