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श्री उपासकदशांग सूत्र
कुण्डकौलिक तुम धन्य हो तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए इमीसे कहाए लढे हट्ट (तुढे) जहा कामदेवो तहा णिग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ। धम्मकहा।
भावार्थ - उस काल और उस समय भगवान् महावीर स्वामी कम्पिलपुर पधारे। भगवान् के पधारने का वृत्तांत जान कर कुण्डकौलिक बहुत हर्षित हुए यावत् कामदेव की भाँति पर्युपासना करने लगे। भगवान् ने धर्मदेशना फरमाई।
(४२) 'कुण्डकोलियाइ!' से समणे भगवं महावीरे कुण्डकोलियं समणोवासयं एवं वयासी-से णूणं कुण्डकोलिया! कल्लं तुभं पुव्वावरण्हकालसमयंसि असोगवणियाए एगे देवे अंतियं पाउन्भवित्था। तए णं से देवे णाममुद्दयं च तहेव जाव पडिगए। से णूणं कुण्डकोलिया! अढे समझे? हंता अत्थि। तं धण्णे सि णं तुमं कुण्डकोलिया! जहा कामदेवो।
भावार्थ - कुण्डकौलिक को संबोधित कर भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया - “हे कुण्डकौलिक! कल दोपहर के समय अशोकवाटिका में तुम्हारे समीप एक देव आया और उसने तुम्हारे उत्तरीय व नामांकित मुद्रिका उठाई यावत् प्रश्नोत्तरों का वर्णन यावत् लौट गया। हे कुण्डकौलिक! क्या यह बात सत्य है?" कुण्डकौलिक ने उत्तर दिया - “हाँ भगवन्! सत्य है।" तब भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया - "हे कुण्डकौलिक! तुम धन्य हो' यावत् कामदेव के समान सारा वर्णन जानना चाहिये।
'अजोइ'! समणे भगवं महावीरे समणे णिग्गंथे य णिग्गंथीओ य आमंतित्ता एवं वयासी-जइ ताव अजो! गिहिणो गिहिमज्झावसंता णं अण्णउत्थिए अटेहि य हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य णिप्पट्टपसिणवागरणे करेंति,
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