Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 183
________________ श्री उपासकदशांग सूत्र तणं से महासयए समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरड़, तए णं समणे भगवं महावीरे बहिया जणवयविहारं विहरइ । भावार्थ व्रत धारण करने से महाशतक 'श्रमणोपासक' हो गए। वे जीव- अजीव को जानने वाले यावत् साधु-साध्वियों को प्रासुक - एषणीय आहार- पानी बहराने वाले हो गए। तत्पश्चात् कभी भगवान् जनपद में विचरने लगे । कामासक्त रेवती की नृशंस योजना (६२) तए णं तीसे रेईए गाहावइणीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्ब जाव इमेयारूवे अज्झत्थिए ४ - ' एवं खलु अहं इमासिं दुवालसण्हं सवत्तीणं विघाणं णो संचामि महासयएणं समणोवासएणं सद्धिं उरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरित्तए, तं सेयं खलु ममं एयाओ दुवालस - वि सवत्तियाओ अग्गिप्पओगेणं वा सत्थप्पओगेणं वा विसप्पओगेणं वा जीवियाओ ववरोवित्ता, एयासिं एगमेगं हिरण्णकोडिं एगमेगं वयं सयमेव उवसंपज्जित्ता णं महासयएणं समणोवासंएणं सद्धिं उरालाई जाव विहरित्तए' एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तासं दुवालसहं सवत्तीणं अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणी विहरइ । कठिन शब्दार्थ - सवत्तीणं - सौतों के, विघाएणं - विघ्न के कारण, उरालाई विपुल, माणुस्साई - मनुष्य जीवन के, भोगभोगाई - विषय भोगों को, अग्गिप्पओगेणं अग्नि प्रयोग से, सत्थप्पओगेणं - शस्त्र प्रयोग से, विसप्पओगेणं - विष प्रयोग से, अंतराणि - अंतर - अ - अनुकूल अवसर, छिद्दाणि छिद्र-सूनापन, विवराणि - विवर एकान्त की टोह । भावार्थ - एक बार मध्य रात्रि के समय रेवती गाथापत्नी को कुटुम्ब जागरण करते हुए विचार हुआ कि “इन बारह सोतों के कारण मैं महाशतक श्रमणोपासक के साथ यथेच्छ कामभोग नहीं भोग सकती । अतः मेरे लिए यह उचित होगा कि इन बारह ही सोतों को अग्निप्रयोग से, शस्त्र द्वारा या विष द्वारा जीवन - रहित कर दूँ और इनका एक-एक करोड़ स्वर्ण १५४ Jain Education International - For Personal & Private Use Only - - www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210