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दसमं अज्डायणं - दशम अध्ययन . श्वमणोपासक सालिहीपिता
(७०) दसमस्स उक्खेवो। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी णयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं सावत्थीए णयरीए सालिहीपिया णामं गाहावई परिवसइ। अड्डे दित्ते। चत्तारि हिरण्णकोडीओ णिहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वुड्डिपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ। चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था फग्गुणी भारिया। सामी समोसढे। जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवजइ।
भावार्थ - हे जम्बू! उस समय श्रावस्ती नगरी थी। कोष्टक उद्यान था। जितशत्रु राजा था। वहाँ 'सालिहीपिता' नामक गाथापति रहते थे, जो आढ्य यावत् अपराभूत थे। उनके पास चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं का भण्डार, चार करोड़ व्यापार में, चार करोड़ घर-बिखरी थी। चार गो-व्रज थे। ‘फाल्गुनी' नामक भार्या थी। उस समय भगवान् महावीरस्वामी का वहाँ पदार्पण हुआ। आनंद की भाँति सालिहीपिता ने श्रावक-व्रत धारण किए। भगवान् का विहार हो गया।
जहा कामदेवो तहा जेटुं पुत्तं ठवेत्ता पोसहसालाए समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्तिं उवसंपजित्ताणं विहरइ। णवरं णिरुवसग्गाओ एक्कारसवि उवासगपडिमाओ तहेव भाणियव्वाओ। एवं कामदेवगमेणं णेयव्वं जाव सोहम्मे कप्पे अरुणकीले विमाणे देवत्ताए उववण्णे। चत्तारि पलिओवमाई ठिई, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ।
॥ दसमं अज्झयणं समत्तं॥
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