Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 195
________________ णवमं अज्झयणं - नवम अध्ययन श्वमणोपासक नंदिनीपिता (६६) णवमस्स उक्खेवो। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी णयरी। कोट्टए चेइए जियसत्तू राया। तत्थ णं सावत्थीए णयरीए णंदिणीपिया णाम गाहावई परिवसइ, अडे। चत्तारि हिरण्णकोडीओ णिहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वुडिपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं। अस्सिणी भारिया। सामी समोसढे। जहा आणंदो : तहेव गिहिधम्म पडिवजइ। सामी बहिया विहरइ। भावार्थ - हे जंबू! उस समय श्रावस्ती नगरी के बाहर कोष्टक नामक उद्यान था। जितशत्रु राजा था। उस श्रावस्ती नगरी में 'नंदिनीपिता' नामक गाथापति रहता था, जो आढ्य यावत् अपराभूत था। उसके पास चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएँ भण्डार में, चार करोड़ व्यापार में तथा चार करोड़ की घर-बिखरी थी। चार गो व्रज थे। उनकी भार्या का नाम ‘अश्विनी' था। भगवान् महावीर स्वामी श्रावस्ती पधारे। आनन्द की भाँति नन्दिनीपिता ने भी श्रावक धर्म स्वीकार किया। भगवान् जनपद में विचरने लगे। तए णं से णंदिणीपिया समणोवासए जाए जाव विहरइ। तए णं तस्स णंदिणीपियस्स समणोवासयस्स बहूहिं सीलव्वयगुण जाव भावेमाणस्स चोइस संवच्छराई वीइक्कंताई। तहेव जेहँ पुत्तं ठवेइ, धम्मपण्णत्तिं, वीसं वासाइं परियागं, णाणत्तं अरुणगवे विमाणे उववाओ। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ॥ णिक्खेवो॥ ॥णवमं अज्झयणं समत्तं॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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