Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 208
________________ श्री कामदेव जी की सज्झाय १७६ गज रूप तजी सर्प हुवोजी, कालो महा विकराल। डंक दियो कामदेव ने, यो क्रोधी महा चंडाल ॥१०॥ उज्ज्वल वेदना उपनीजी, डरिया नहीं तिल मात्र। सूर थाकी प्रकट हुवोजी, देवता रूप साक्षात् ॥११॥ करजोड़ी यूं विनवे, थारा सुरपति किया रे वखाण : मैं मूढ़मति सरध्यो नहीं, थाने उपसर्ग दियो आण॥१२॥ मन करी डगिया नहीं जी, थें धर्म पाया परिणाम । खमो अपराध माहरो कही, देव गयो निज स्थान ॥१३॥ वीर जिनन्द समोसर्याजी, कामदेव वन्दन जाय। वीर कहे उपसर्ग दियोजी, देव मिथ्यात्वी आय॥१४॥ ____ हां स्वामीजी सांच छ, जब श्रमण श्रमणी बुलाय। घड़ बेठां उपसर्ग सह्यो, इम प्रशंसे जिनराय॥१५॥ बीस वरस शुद्ध पालियाजी, श्रावक ना व्रत बार। देवलोक मां उपन्या, चवी जासे मोक्ष मझार ॥१६॥ मरुधर देश सुहामणोजी, जयपुर कियो चोमास । अष्टादस शत छयासीए, खुशालचन्द जोड़ी प्रकाश ॥१७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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