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परिशिष्ट
तुंगिका के श्रमणोपासक देवाधिदेव श्रमण भगवान् महावीर प्रभु के उपासकों में, तुंगिका नगरी के श्रमणोपासकों का उल्लेख भगवती सूत्र शतक २ उद्देशक ५ में आया है। उनकी पौद्गलिक और आत्मिक ऋद्धि का मार्मिक वर्णन है। विषय के अनुरूप होने के कारण यह विषय यहाँ उद्धृत किया जाता है। ___ "तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ णयराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवय विहारं विहरइ।..
तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया णामं णयरी होत्था, वण्णओ। तीसे णं तुंगियाए णयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे पुप्फवइए णामं चेइए होत्था, वण्णओ। तत्थ णं तुंगियाए णयरीए बहवे समणोवासया परिवसंति, अट्ठा दित्ता वित्थिण्णविपुलभवण-सयणाऽसण-जाण-वाहणाइण्णा, बहुधण- बहुजायरूवरयया, आओगपओग-संपउत्ता, विच्छड्डिय-विपुल-भत्तपाणा, बहुदासी-दासगो-महिस-गवेलयप्पभूया, बहुजणस्स अपरिभूया।"
अर्थ - उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुणशील चैत्य से निकल कर अन्य जनपद में विचर रहे थे।
उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुंणशील चैत्य से निकल कर अन्य जनपद में विचर रहे थे।
उस समय तुंगिका नाम की नगरी थी। उस नगरी के बाहर पूर्वोत्तर दिशा में पुष्पवती नाम का उद्यान था। तुंगिका नगरी में बहुत-से श्रमणोपासक निवास करते थे। वे श्रमणोपासक आढ्य (धनधान्य से परिपूर्ण) दीप्त (देदीप्यमान) थे। उनके भवन विशाल-विस्तीर्ण थे। शयन-आसन, यानवाहन आदि सुख के साधन भी उनके पास बहुत और उत्तम थे। धन एवं सोना-चाँदी से भी वे परिपूर्ण थे। वे लेन-देन एवं ब्याज पर धन लगाने का व्यवसाय भी बहुत करते थे। उनके यहाँ बहुत लोग भोजन करते थे। इसलिए झूठन में भी भोजन बहुत रह जाता था। उनके दास-दासी, गाय, भैंस, भेड़-बकरियाँ भी बहुत थे। वे समर्थ थे। उन्हें कोई भी विचलित नहीं कर सकता था।
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