Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 201
________________ श्री उपासकदशांग सूत्र को देवकृत उपसर्ग हुए। माता, व्याधि आदि तो चलित होने के निमित्त थे । अतएव चार को उपद्रव रहित मानना उचित लगता है। १७२ अरुणे अरुणाभे खलु, अरुणप्पह अरुणकंत सिट्ठे य । अरुणज्झए य छट्ठे, भूय - वडिंसे गवे कीले ॥ ५ ॥ अर्थ १. अरुण २. अरुणाभ ३. अरुणप्रभ ४ अरुणकांत ५. अरुणशिष्ट ६. अरुणध्वज ७. अरुणभूत ८. अरुणावतंस ६. अरुणगव और १०. अरुणकिल विमान में उत्पन्न हुए । गोधन की संख्या सौधर्म-स्वर्ग में उत्पन्न हुए उन विमानों के नाम चाली सट्ठि असीई, सट्ठी सट्ठी य सट्ठि दस सहस्सा । असिई चत्ता चत्ता, एए वइयाण य सहस्साणं ॥ ६ ॥ अर्थ १. चालीस हजार २. साठ हजार ३. अस्सी हजार ४. साठ हजार ५. साठ हजार ६. साठ हजार ७. दस हजार ८. अस्सी हजार ६. चालीस हजार और १०. चालीस हजार गौएँ थीं। - श्रावकों की धन सम्पत्ति बारस अट्ठारस चडवीसं तिविहं अट्ठरसाइ णेयं । धणेण ति चोव्वीसं, बारस बारस य कोडीओ ॥ ७ ॥ अर्थ १. बारह हिरण्यकोटि २. अठारह हिरण्यकोटि ३. चौबीस हिरण्यकोटि ४. अठारह हिरण्यकोटि ५. अठारह हिरण्यकोटि ६. अठारह हिरण्यकोटि ७. एक हिरण्यकोटि ८. चौबीस हिरण्यकोटि ε. बारह हिरण्यकोटि और १०. के बारह हिरण्यकोटि धन था । उपभोग परिभोग के नियम Jain Education International उल्लण-दंतवण-फले अभिंगणुव्वट्टणे सिणाणे य। वत्थ-विलेवण- पुप्फे, आभरणं धूव - पेजाइ ॥ ८ ॥ भक्खोयण - सूव - घए सागे माहुर-जेमणऽण्ण- पाणे य । तंबोले इगवीसं, आणंदाईण अभिग्गाहा ॥ ६॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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