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नौवां अध्ययन - श्रमणोपासक नंदिनीपिता
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भावार्थ - नंदिनीपिता व्रत धारण कर श्रमणोपासक बन गए। जीवा-जीव के ज्ञाता यावत् साधु-साध्वियों को प्रासुक एषणीय आहार बहराने लगे। चौदह वर्ष के बाद ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का मुखिया नियुक्त कर दिया। उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं की आराधना तथा अन्य तपश्चर्या आदि से बीस वर्ष तक की श्रमणोपासक पर्याय का पालन कर, मासिक संलेखना से सौधर्म देवलोक के अरुणगवे विमान में उत्पन्न हो गए। वहाँ चार पल्योपम की स्थिति भोग कर और महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे।
निक्षेप - आर्य सुधर्मास्वामी बोले - हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने नौवें अध्ययन का यही भाव फरमाया है, जो मैंने तुम्हें कहा है।
॥ नौवां अध्ययन समाप्त॥
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