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दसवां अध्ययन - श्रमणोपासक सालिहीपिता
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कठिन शब्दार्थ - णिरुवसग्गाओ - उपसर्ग रहित।
भावार्थ - कामदेव के समान सालिहीपिता ने भी ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंप कर भगवान् की धर्मप्रज्ञप्ति स्वीकार की। उपसर्ग-रहित उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं तथा तपश्चर्या से आत्मा को भावित किया। सारा वर्णन कामदेव के समान जानना चाहिए। विशेषता यह कि मनुष्यायु पूर्ण कर के वे सौधर्म स्वर्ग के अरुणकील विमान में देव रूप में उत्पन्न हुए। वे चार पल्योपम की देवस्थिति का उपभोग करेंगे और महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे।
॥ दशवां अध्ययन समाप्त॥
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