Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 187
________________ १५८ . श्री उपासकदशांग सूत्र **-*-*-08-10-19-08-12-06--*-*-12-12-20-00-00-00-19-12-10-0-0-0-0-0-0-0-28-8-10-19--0-0-0-0-0-0-0-00-00 __विवेचन - रेवती का महाशतक से कहने का आशय यह है कि - तुम धर्म-साधना कर रहे हो, वह भविष्य में स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त होने से सुख की कल्पना से कर रहे हो, परन्तु भावी सुख की मिथ्या कामना से वर्तमान सुख को त्यागना नहीं चाहिए। छोड़ो इस साधना को और चलो मेरे साथ। मैं तुम्हें सभी सुख दूंगी। ____तए णं से महासयए समणोवासए रेवईए गाहावइणीए एयमढें णो आढाइ, णो परियाणाइ, अणाढाइजमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ। _____तएणंसारेवई गाहावइणी महासययंसमणोवासयंदोच्चंपितच्चंपिएवं वयासी'हं भो! तं चेव भणइ, सोऽवि तहेव जाव अणाढाइजमाणे अपरियाणमाणे विहरइ। तए णं सा रेवई गाहावइणी महासयएणं समणोवासएणं अणाढाइजमाणी अपरियाणिजमाणी जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया। कठिन शब्दार्थ - अणाढाइजमाणे - आदर न देता हुआ, अपरियाणमाणे - ध्यान न देता हुआ, तुसिणीए - मौन भाव से। भावार्थ - श्रमणोपासक महाशतक ने रेवती गाथापत्नी की इस बात को कोई आदर नहीं दिया और न ही उस पर ध्यान दिया। वह मौन भाव से धर्माराधना में लग गया। उसकी पत्नी रेवती ने दूसरी तीसरी बार फिर वैसा ही कहा, पर वह उसी प्रकार अपनी पत्नी रेवती के कथन को आदर न देता हुआ, उस पर ध्यान न देता हुआ धर्मध्यान में रत रहा। रेवती गाथापत्नी, महाशतक श्रमणोपासक द्वारा आदर न दिए जाने पर, ध्यान न दिये जाने पर जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। (६५). तए णं से महासयए समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपजित्ताणं विहरइ। पढमं अहात्तं जाव एक्कारसऽवि। तए णं से महासयए समणोवासए तेणं उरालेणं जाव किसे धमणिसंतए जाए। तए णं तस्स महासयगस्स समणोवासयस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए ४-‘एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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