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छठा अध्ययन - श्रमणोपासक कुण्डकौलिक - कुण्डकौलिक तुम धन्य हो १२५ **-12-20--0-0-8-0-0-0-0-0-80-9-8-28-0----2-8-2-9-12-10-08-04-10-08-2--8-0------- सक्का पुणाई अजो! समणेहिं णिग्गंथेहिं दुवालसंगं गणिपिडगं अहिजमाणेहिं अण्णउत्थिया अढेहि य जाव णिप्पट्टपसिणवागरणा करित्तए।
कठिन शब्दार्थ - अजोइ - हे आर्यो, अण्णउत्थिए - अन्यमतानुयायियों को, अट्टेहिअर्थ से, हेऊहि - हेतु से, पसिणेहि - प्रश्न से, कारणेहि - कारण से, वागरणेहि - आख्यान से, णिप्पट्ठपसिणवागरणा - प्रश्नोत्तरों से निरुत्तर। ___ भावार्थ - तत्पश्चात् भगवान् महावीर स्वामी ने साधु-साध्वियों को आमंत्रित कर फरमाया"हे आर्यो! गृहस्थावस्था में रहे हुए श्रावक भी अन्यतीर्थियों को अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण, आख्यान आदि तथा प्रश्नोत्तरों से निरुत्तर कर देते हैं, तो द्वादशांग के अध्येता गणिपिटकधर साधु-साध्वी का तो कहना ही क्या? उन्हें तो अवश्य ही अन्यतीर्थियों को निरुत्तर करना चाहिए। ___तए णं समणा णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स तहत्ति एयमढें विणएणं पडिसुणेति। तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पसिणाई पुच्छइ, पुच्छित्ता अट्ठमादियइ, अट्ठमादित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए। सामी बहिया जणवयविहारं विहरइ। .. भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के उपरोक्त कथन को उन साधु साध्वियों ने “ऐसा ही है भगवन्!" - यों कह कर विनयपूर्वक स्वीकार किया। श्रमणोपासक कुंडकौलिक ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वंदन नमस्कार किया, प्रश्न पूछे, समाधान प्राप्त किया तथा जिस दिशा से आया था, उसी दिशा की ओर लौट गया। भगवान् महावीर स्वामी अन्य जनपदों में विहार कर गए।
(४३) तए णं तस्स कुण्डकोलियस्स समणोकासयस्स बहूहिं सील जाव भावेमाणस्स चोद्दस्स संवच्छराई वीइक्कंताइं, पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णया कयाइ जहा कामदेवो तहा जेट्टपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
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