Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 168
________________ सातवां अध्ययन - श्रमणोपासक सकडालपुत्र - अग्निमित्रा श्रमणोपासिका हुई १३६ भावार्थ - तब सकडालपुत्र ने अपने कर्मचारियों को बुला कर कहा - "शीघ्र ही शीघ्रगति वाला रथ उपस्थित करो, जिसमें जोते जाने वाले बैल दक्ष, खुर तथा लम्बी पूँछ वाले, सरीखे सींगों वाले, गले में सुनहरे आभूषण पहने हुए, सुनहरी नक्काशीदार जोत वाले, गले में लटकते हुए चाँदी के धुंघरु वाले, सुनहरी सूत की नाथ से बंधे हुए, मस्तक पर नील कमल के समान कलंगी धारण किए हुए हों और युवावस्था वाले हों।" कर्मचारियों ने आज्ञानुसार कार्य कर आज्ञा प्रत्यर्पित की। . (५३) तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया ण्हाया जाव पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोलासपुरं णयरं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ . पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता चेडियाचक्कवालपरिवुडा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो जाव वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे जाव पंजलिउडा ठिइया चेव पजुवासइ। कठिन शब्दार्थ - चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा - दासियों के समूह से घिरी हुई, णच्चासण्णे - न अधिक निकट, णाइदूरे - न अधिक दूर, पंजलिउडा - हाथ जोड़े। भावार्थ - तब अग्निमित्रा ने स्नान कर सभा में जाने योग्य शुद्ध वस्त्र धारण किए और अल्पभार वाले बहुमूल्य आभूषणों से देह विभूषित की। तत्पश्चात् दासियों के समूह से परिवृत होकर धार्मिक रथ पर बैठ कर पोलासपुर नगर से निकली तथा सहस्राम्रवन उद्यान में आई धार्मिक उत्तम रथ से नीचे उतरी और दासियों के समूह से घिरी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप गई। तीन बार वंदना-नमस्कार कर, न अधिक दूर न अधिक निकट हाथ जोड़ कर पर्युपासना करने लगी। (५४) तए णं समणे भगवं महावीरे अग्गिमित्ताए तीसे य जाव धम्मं कहेइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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