Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 177
________________ श्री उपासकदशांग सूत्र अथवा बाज का हाथ, पाँव, खुर, पूँछ, पंख, सींग या रोम, इनमें से जो भी अंग पकड़ता है, तो वह लेशमात्र भी हिल-डुल नहीं सकता। इसी प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी भी मुझे अर्थ, हेतु, व्याकरण आदि द्वारा जहाँ-जहाँ पकड़ें, वहाँ-वहाँ मैं निरुत्तर हो जाऊँ । इसलिए ऐसा कहा कि मैं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से शास्त्रार्थ करने में असमर्थ हूँ । मैं तुम्हें धर्म के उद्देश्य से स्थान नहीं देता (५८) १४८ तणं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी- 'जम्हा णं देवाप्पिया! तुब्भे मम धम्मायरियस्स जाव महावीरस्स संतेहिं तच्चेहिं तहिए हिं सब्भूएहिं भावेहिं गुणकित्तणं करेह तम्हा णं अहं तुब्भे पाडिहारिएणं पीढ जाव संथारएणं उवणिमंतेमि, णो चेव णं धम्मोत्ति वा तवोत्ति वा, तं गच्छह णं तुब्भे मम कुंभारावणेसु पाडिहारियं पीढफलग जाव ओगिण्हित्ताणं विहरह ।' कठिन शब्दार्थ - संतेहिं - सत्य, तच्चेहिं - यथार्थ, तहिएहिं - तथ्य, सब्भूएहिं सद्भूत, भावेहिं - भावों से, उवणिमंतेमि - आमंत्रित करता हूं, धम्म धर्म मान कर, तवोत्ति - तप मान कर । भावार्थ सकडालपुत्र ने कहा " हे मंखलिपुत्र गोशालक ! आपने मेरे धर्मोपदेशक धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का सत्य, तथ्य, सद्भूत भावों का यथार्थ गुण-कीर्तन किया, अतः मैं प्रातिहारिक पीठ - फलक आदि का निमंत्रण करता हूँ । परन्तु मैं इसमें धर्म या तप मान कर देता हूँ, ऐसी बात नहीं है। आप जाइए तथा मेरी दुकानों से इच्छित पीठ - फलक आदि लेकर सुख से रहिए ।" तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता कुंभारावणेसु पाडिहारियं पीढ जाव ओगिव्हित्ता णं विहरइ । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासयं जाहे णो संचाएइ बहूहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य णिग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोमित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संते तंते परितंते Jain Education International - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org

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