Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 175
________________ १४६ - श्री उपासकदशांग सूत्र खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे संसारमहासमुद्दे बहवे जीवे णस्समाणे विणस्समाणे जाव विलुप्पमाणे वुड्डमाणे णिवुड्डमाणे उप्पियमाणे धम्ममईए णावाए णिव्वाणतीराभिमुहे साहत्थिं संपावेइ, से तेणटेणं देवाणुप्पिया! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महाणिजामए।' कठिन शब्दार्थ - महाणिजामए - महानिर्यामक, वुड्डमाणे - डूब रहे हैं, णिवुड्डमाणेगोते खा रहे हैं, उप्पियमाणे - बहते जा रहे हैं, णावाए - नाव से, णिव्वाणतीराभिमुहे - मोक्ष रूपी किनारे पर। भावार्थ - गोशालक फिर पूछता है - “हे देवानुप्रिय! यहाँ ‘महान् निर्यामक' आए थे?" "कौन महानिर्यामक?" "श्रमण भगवान् महावीर स्वामी महान् निर्यामक हैं?" सकडालपुत्र पूछते हैं - "किस प्रकार महान् निर्यामक हैं?" गोशालक कहता है - "संसार एक महान दुस्तर समुद्र है। इसमें संसारी जीव नष्ट हो रहे हैं, विनष्ट हो रहे हैं, यावत् डूब रहे हैं, जन्म-मरण रूपी गोते'लगा रहे हैं, ऐसे डूबते जीवों को श्रमण भगवान् महावीर स्वामी धर्मरूपी नाव में बिठा कर स्वयं निर्वाण रूपी तीर तक पहुँचाते हैं। अतः उन्हें मैं महान् धर्म-निर्यामक (बड़े जहाज को चलाने वाले, खेवैया, नाविक) कहता हूँ।" - मैं भगवान् से विवाद नहीं कर सकता (५७) तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी - 'तुब्भे णं देवाणुप्पिया! इयच्छेया जाव इयणिउणा इयणयवादी इयउवएसलद्धा इयविण्णाणपत्ता, पभू णं तुब्भे मम धम्ममायरिएणं धम्मोवएसएणं समणेणं भगवया महावीरेणं सद्धिं विवादं करेत्तए?' 'णो इणढे समढे। कठिन शब्दार्थ - इयच्छेया - इतने छेक, इयणिउणा - इतने निपुण (सूक्ष्मदर्शी), इयणयवादी - इतने नयवादी-नीतिवक्ता, इयउवएसलद्धा - इतने उपदेशक लब्ध-आप्तजनों का उपदेश प्राप्त किये हुए-बहुश्रुत, इयविण्णाणपत्ता - इतने विज्ञान प्राप्त-विशेष बोध युक्त, धम्मायरिएणं - धर्माचार्य से, धम्मोवएसएणं - धर्मोपदेशक, विवादं - विवाद-तत्त्वचर्चा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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