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सातवां अध्ययन श्रमणोपासक सकडालपुत्र
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भ० महावीर स्वामी का पदार्पण १३१
कठिन शब्दार्थ - धम्मायरिए - धर्माचार्य, धम्मोवएसए - धर्मोपदेशक, वंदिस्सामि वंदना करूंगा, पज्जुवासिस्सामि - पर्युपासना करूंगा, उवणिमंतिस्सामि - निमंत्रण करूंगा । भावार्थ - उस देव के द्वारा उपरोक्त कथन सुन कर सकडालपुत्र ने विचार किया कि मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोसालक महामाहन् यावत् अतिशयधारी हैं। वे कल यहाँ पधारेंगे। मैं उन्हें वन्दना - नमस्कार यावत् पर्युपासना करूंगा। प्रातिहारिक पीठ फलक आदि का निमंत्रण करूंगा ।
विवेचन - यद्यपि देव ने तो भगवान् महावीर स्वामी के लिए महामाहन्, सर्वज्ञ आदि शब्दों का प्रयोग किया था, पर सकडालपुत्र ने गोशालक के लिए सारा वृत्तान्त समझा । भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण
(४७)
तए णं कल्लं जाव जलंते समणे भगवं महावीरे जाव समोसरिए । परिसा ग्गिया जाव पज्जुवासइ । तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे - 'एवं खलु समणे भगवं महावीरे जाव विहरड़, तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं, वंदामि जाव पज्जुवासामि' एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पहाए जाव पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं जाव अप्पमहग्घा भरणालं कि यसरीरे मणुस्वग्गुरापरिगए साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पोलासपुरं णयरं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जाव पज्जुवासइ ।
कठिन शब्दार्थ - सुद्धप्पावेसाई - शुद्ध सभायोग्य ( मांगलिक एवं उत्तम ) वस्त्र, अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे - थोड़े से बहुमूल्य ( वजन में अल्प और मूल्य में ऊंचे) आभूषणों से शरीर अलंकृत किया, मणुस्सवग्गुरापरिंगए - अनेक मनुष्यों से घिरा हुआ ।
भावार्थ - तत्पश्चात् अगले दिन प्रातः काल होने पर श्रमण भगवान् महावीरस्वामी पोलासपुर के सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे। परिषद् धर्मकथा सुनने के लिए गई और पर्युपासना करने लगी।
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