Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 161
________________ ----------- १३२ श्री उपासकदशांग सूत्र **-10-00-00-00-0-0-0-0-0-0-10-19-11-10------- सकडालपुत्र आजीविकोपासक को ज्ञात हुआ कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे हैं तो उसने सोचा मैं भी जाकर भगवान् की वंदना यावत् पर्युपासना करूँ। ऐसा विचार कर उसने स्नान किया यावत् शुद्ध सभा योग्य वस्त्र पहने, वजन में अल्प और मूल्य में ऊंचे आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया और मित्रजनों से घिरा हुआ वह अपने घर से निकला, पोलासपुर नगर के मध्य होता हुआ (राज मार्ग से) सहस्राम्रवन उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप आया और तीन बार आवर्तन युक्त वंदना नमस्कार कर पर्युपासना करने लगा। धर्म देशना तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तीसे य. महइ जाव धम्मकहा समत्ता। भावार्थ - तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने आजीविकोपासक सकडालपुत्र को तथा विशाल परिषद् को धर्मदेशना दी। 'सद्दालपुत्ता' इ! समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी - ‘से णूणं सद्दालपुत्ता! कल्लं तुमं पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया जाव विहरसि। तए णं तुम्भं एगे देवे अंतियं पाउन्भवित्था। तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे एवं वयासी - हं भो सद्दालपुत्ता! तं चेव सव्वं जाव पजुवासिस्सामि। से णूणं सद्दालपुत्ता! अढे समढे?' हंता अत्थि। (तं) णो खलु सदालपुत्ता! तेणं देवेणं गोसालं मंखलिपुत्तं पणिहाय एवं वुत्ते।। ___ भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सकडालपुत्र आजीविकोपासक से कहा - "हे सकडालपुत्र! कल दोपहर के समय जब तुम अशोकवाटिका में थे तब एक देव तुम्हारे पास आया। आकाश में स्थित उस देव ने तुम्हें इस प्रकार कहा - हे सकडाल पुत्र! कल प्रातः अर्हत् केवली आएंगे। तुमने उसे गोशालक के लिए समझा यावत् उसकी पर्युपासना का विचार किया इत्यादि। यह बात सत्य है।" सकडालपुत्र ने उत्तर दिया - हाँ, भगवन्! यह सत्य है तब भगवान् ने फरमाया - 'हे सकडालपुत्र! देव का कथन मंखलिपुत्र गोशालक के लिये नहीं था।' तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासयस्स समणेणं भगवया महावीरेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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