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श्री उपासकदशांग सूत्र **-12-12-2-28-02-22--28-12-12-12-12-12-10--2-10-08-0-0-0-0-8-12-12-12-16-02-12--08-12-08-22-08-28-12-08-12--- आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचामि, जहा णं तुमं अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजसि।
एवं मज्झिमयं, कणीयसं, एक्केक्के पंच सोल्लया, तहेव करेइ, जहा चुलणीपियस्स, णवरं एक्केक्के पंच सोल्लया।
भावार्थ - मध्य रात्रि के समय सुरादेव श्रमणोपासक के समीप एक देव प्रकट हुआ। उसने नीली तेज धार वाली यावत् तलवार ग्रहण कर सुरादेव श्रावक से कहा - मृत्यु को चाहने वाले श्रमणोपासक सुरादेव! यदि तुम आज शीलव्रत आदि का भंग नहीं करते हो तो मैं तुम्हारे बड़े बेटे को घर से उठा लाऊंगा और लाकर तुम्हारे सामने मार डालूंगा। मार कर उसके पांच मांस खण्ड करूंगा, उबलते तेल में तल कर उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सिंचूंगा, जिससे तुम अकाल में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे। ____ इसी प्रकार उसने मंझले और छोटे लड़के को भी मार डालने, उनको पांच पांच मांस खण्डों में काट डालने की धमकी दी। सुरादेव के निर्भय रहने पर जिस प्रकार चुलनीपिता के ' साथ देव ने किया वैसा ही उसने किया, उसके पुत्रों को मार डाला। विशेषता यह कि वहां देव ने तीन-तीन मांस खंड किये यहां देव ने पांच-पांच मांस खंड किए। .
रोगों की धमकी तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं चउत्थं पि एवं वयासी-हं भो सुरादेवा! समणोवासया! अपत्थियपत्थिया ४ जाव ण परिच्चय(भंज)सि तो ते अज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंके पक्खिवामि, तंजहा-सासे, कासे जरे, दाहे, कुच्छिसूले, भगंदरे, अरिसए, अजीरए, दिट्ठिसूले, मुद्धसूले, अकारिए अच्छिवेयणा, कण्मवेयणा, कडुए, उदरे कोढे, जहा णं तुमं अदृदुहट्ट जाव ववरोविजसि।
कठिन शब्दार्थ - परिच्चयसि - त्याग करोगे, जमगसमगमेव - एक साथ ही, रोगायंकेभयानक रोग, पक्खिवामि - प्रक्षेप करता हूं। सासे - श्वास-दमा, कासे - कास-खांसी, जरे- ज्वर बुखार, दाहे - दाह - देह में जलन, कुच्छिसूले - कुक्षि-शूल - पेट में तीव्र पीड़ा, भगंदरे - भगंदर-गुदा पर फोड़ा, अरिसए - अर्श-बवासीर, अजीरए - अजीर्णबदहजमी, दिट्ठीसूले - दृष्टिशूल-नेत्र में शूल चुभने जैसी तेज पीड़ा, मुद्धसूले - मस्तक पीड़ा,
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