Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 149
________________ श्री उपासकदशांग सूत्र अच्छा, धम्मपण्णत्ती - धर्मप्रज्ञप्ति, उट्ठाणे - उत्थान बल - दैहिक शक्ति, वीरिए कम्मे - कर्म, ब पुरुषकार - पौरुष का अभिमान, परक्कमे पराक्रम एवं ओजपूर्ण उपक्रम, सव्वभावा सभी भाव निश्चित, अणियया- अनियत । १२० - - - Jain Education International - साध्य के अनुरूप ऊर्ध्वगामी प्रयत्न, वीर्य आंतरिक शक्ति, पुरिसक्कार पौरुष के अभिमान के अनुरूप उत्साह होने वाले कार्य, णियया- नियत - भावार्थ - धर्मप्रज्ञप्ति की आराधना करते हुए कुण्डकौलिक के पास एक देव आया । उसने कुण्डकौलिक की मुद्रिका और उत्तरीय वस्त्र उठा लिये तथा घुंघरुओं सहित वस्त्रों से युक्त अंतरिक्ष में रहा हुआ कहने लगा - “ अहो कुण्डकौलिक ! मंखलिपुत्र गोशालक की धर्मविधि अच्छी है, क्योंकि उसमें उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम आदि कुछ भी नहीं है। सभी भावों को नियत माना गया है। परन्तु श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की धर्मप्रज्ञप्ति अच्छ नहीं है, क्योंकि उसमें उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम आदि माने गए हैं। सभी भावों को अनियत माना गया है। विवेचन - काल, स्वभाव, कर्म, नियति एवं पुरुषार्थ - ये पाँचों समवाय अनुकूल होने पर ही कार्य-सिद्धि होती है, तथापि केवल एक की अपेक्षा कर शेष की उपेक्षा करने वाले असत्यभाषण करते हैं। जैसे १. 'काल' को ही सर्वेसर्वा मानने वालों का कथन है कि - काल ही भूतों (जीवों) को बनाता है, नष्ट करता है, जब सारा जगत् सोता है तब भी काल जाग्रत रहता है। काल-मर्यादा का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता । यथा - - कालः सृजति भूतानि, कालः संहरते प्रजाः । कालः सुप्तेसु जागर्ति, कालो हि दुरतिक्रमः ॥ (२) स्वभाववादी का कथन है - कण्टकस्य तीक्ष्णत्वं, मयूरस्य विचित्रता । - वर्णष्टच ताम्रचूडानाम्, स्वभावेन भवन्तिहि ॥ काँटे की तीक्ष्णता, मयूर पंखों की विचित्रता, मुर्गे के पंखों का रंग, ये सब स्वभाव से ही होते हैं। बिना स्वभाव के आम से नारंगी नहीं बन सकती । (३) कर्मवाद का कथन है कि अपने-अपने कर्म का फल सब को मिलता है। केवल कर्म सर्वेसर्वा है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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