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छठा अध्ययन - श्रमणोपासक कुण्डकौलिक - नियतिवाद पर देव से चर्चा
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0-00-00-00-00-00-14--00-00-00-00-00-00-*--*-*-*-*-*-*-*-00-00-00-00-00-04-08-2-12--19-10--
___ कठिन शब्दार्थ - पुव्वावरण्हकालसमयंसि - दोपहर के समय, असोगवणिया - अशोक वाटिका, पुढविसिलापट्टए - पृथ्वीशिलापट्टक, णाममुद्दगं - नामांकित अंगूठी, उत्तरिजगंउत्तरीय वस्त्र-दुपट्टा।
. भावार्थ - एक दिन दोपहर के समय कुण्डकौलिक श्रमणोपासक अशोकवाटिका में जहां पृथ्वीशिलापट्टक था वहां गया, वहां जाकर उसने अपनी नामांकित मुद्रिका व उत्तरीय वस्त्र उतार कर पृथ्वीशिलापट्टक पर रखा और रखकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा बताई गई धर्म विधि का चिंतन करने लगा।
विवेचन - यद्यपि यहाँ 'सामायिक करने का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, तथापि मुद्रिका व उत्तरीय (नाभि से ऊपर ओढ़ने का वस्त्र) उतारने का कारण सामायिक क्री क्रिया सम्भव है।' अतः उपरोक्त उल्लेख से जाना जा सकता है कि सामायिक में सांसारिक कपड़े नहीं पहनने की परम्परा कितनी प्राचीन है। नियतिवाद पर देव से चर्चा
(४०) . तए णं तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउन्भवित्था। तए णं से देवे णाममुद्दगं च उत्तरिजगं (उत्तरिजं) च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता सखिखिणिं० अंतलिक्खपडिवण्णे कुण्डकोलियं समणोवासयं एवं वयासी-हं भो कुण्डकोलिया समणोवासया! सुंदरी णं देवाणुप्पिया! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती, णत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ का वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा, णियया सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती, अत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा, अणियया सव्वभावा।
कठिन शब्दार्थ - सखिंखिणिं० - वस्त्रों में लगी छोटी छोटी घंटियों (घुघरुओं) की झनझनाहट के साथ, अंतलिक्खपडिवण्णे - अंतरिक्ष-आकाश में रहा हुआ, सुंदरी - सुंदर
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