Book Title: Upasakdashang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 147
________________ छडं अज्डायणं - छठा अध्ययन श्वमणोपासक कुण्डकौलिक (३८) छट्टस्स उक्खेवओ। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं कंपिल्लपुरे णयरे। सहसंबवणे उज्जाणे। जियसत्तू राया। कुण्डकोलिए गाहावई। पूसा भारिया। छ हिरण्णकोडीओ णिहाणपउत्ताओ, छ वुडिपउत्ताओ, छ पवित्थरपउत्ताओ, छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं। सामी समोसढे। जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जइ। सच्चेव वत्तव्वया जाव पडिलाभेमाणे विहरइ। ____ भावार्थ - छठे अध्ययन का प्रारम्भ। सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं - हे जंबू! भगवान् . महावीरस्वामी की विद्यमानता में, कम्पिलपुर नामक नगर था। सहस्राम्र वन नामक उद्यान था। जितशत्रु राजा राज्य करता था। वहाँ 'कुण्डकौलिक' नामक गाथापति रहता था। उसकी पत्नी का नाम पूषा था। छह करोड़ स्वर्ण मुद्राएं भण्डार में, छह करोड़ व्यापार में लगा हुआ था और छह करोड़ की घर-बिखरी थी। भगवान् का कम्पिलपुर पधारना हुआ। कामदेवजी की भांति कुण्डकोलिक ने भी बारह प्रकार का श्रावक-धर्म स्वीकार किया, यावत् साधु-साध्वियों को प्रासुक-एषणीय आहार-पानी बहराते हुए रहने लगे। अशोकवाटिका में साधना रत (३६) तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए अण्णया कयाइ पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया जेणेव पुढविसिलापट्टए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता णाममुद्दगं च उत्तरिजगं च पुढवीसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्तिं उवसंपजित्ताणं विहरइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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