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श्री उपासकदशांग सूत्र
वैसा ही घटित हुआ। देव ने बड़े, मंझले तथा छोटे तीनों पुत्रों को क्रमशः मारा, मांस खण्ड किए, तेल में भून कर चुल्लशतक के शरीर पर छिड़का। इतनी विशेषता है कि वहां देव ने पांच-पांच मांस खण्ड किए थे, यहां देव ने सात-सात मांस खण्ड किए ।
धन नाश की धमकी
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तए णं से चुल्लसयए समणोवासए जाव विहरइ । तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं चउत्थंपि एवं वयासी हं भो चुल्लसयगा! समणोवासया ! जाव भंजसि तो ते अज्ज जाओ इमाओ छ हिरण्णकोडीओ णिहाणपउत्ताओ, छ वुढिपत्ताओ, छ पवित्थरपउत्ताओ ताओ साओ गिहाओ णीणेमि, णीणेत्ता आलभियाए णयरीए सिंघाडग जाव पहेसु सव्वओ समता विप्पइरामि, जहा णं
अवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।
कठिन शब्दार्थ - सिंघाडग - श्रृंगाटक- तिकोने स्थानों, विप्पइरामि - बिखेर दूंगा । भावार्थ तब भी चुल्लशतक श्रमणोपासक निर्भीकता पूर्वक धर्मध्यान में लीन रहा । तदनन्र देव ने चुल्लशतक श्रावक को चौथी बार इस प्रकार कहा 'हे चुल्लशतक श्रमणोपासक! यावत् तुम अपने व्रतों को भंग नहीं करोगे तो मैं तुम्हारी सम्पत्ति जो छह करोड़ (स्वर्ण मुद्राएं) निधान के रूप में, छह करोड़ की व्यापार में और छह करोड़ की घर बिखरी में है उसे मैं ले आऊंगा और लाकर आलभिका नगरी के तिकोने स्थानों यावत् सारे मार्गों में सब तरफ चारों ओर बिखेर दूंगा, जिससे तू आर्त्तध्यान करता हुआ अकाल मृत्यु से मर जायेगा ।'
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(३७)
तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहर। तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव पासित्ता दोच्वंपि तच्वंपि तहेव भणइ जाव ववरोविज्जसि ।
भावार्थ
उस देव द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर भी श्रमणोपासक चुल्लशतक निर्भय भाव से धर्मध्यान में रत रहा।
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जब देव ने चुल्लशतक श्रमणोपासक को इस प्रकार निर्भीक देखा तो उसने दूसरी बार, तीसरी बार पुनः वैसा ही कहा यावत् प्राणों से हाथ धो बैठोगे ।
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