________________
श्री उपासकदशांग सूत्र
**-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-0-0-0-0-0-10-19-00-00-00-00-00-00-00-00-0
0-00-00-00-00-00-0
विवेचन - अवधिज्ञान, वह अतीन्द्रिय ज्ञान है जिस के द्वारा साधक द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की एक मर्यादा या सीमा के साथै मूर्त-रूपी पदार्थों को जानता है। अवधिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम जैसा मंद या तीव्र होता है तदनुसार अवधिज्ञान की व्यापकता होती है।
देवों को और नैरयिकों को जन्म से ही अवधिज्ञान होता है उसे भवप्रत्यय अवधिज्ञान कहा जाता है। तप, व्रत प्रत्याख्यान आदि निर्जरामूलक अनुष्ठानों द्वारा अवधिज्ञानावरणीय कर्म पुद्गलों के क्षयोपशम से जो अवधिज्ञान होता है उसे गुणप्रत्यय अवधिज्ञान कहा जाता है। यह मनुष्यों और तिर्यंचों को होता है। प्रस्तुत सूत्र में आनन्द श्रमणोपासक को प्राप्त अवधिज्ञान की विस्तार से चर्चा की गयी है।
गौतम स्वामी का समागम
. (१३) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए, परिसा णिग्गया जाव पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए . वजरिसहणारायसंघयणे कणगपुलगणिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे घोरतवे महातवे उराले घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबम्भचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेउलेसे छठंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
कठिन शब्दार्थ - सत्तुस्सेहे - सात हाथ के ऊंचे, समचउरंस संठाणसंठिए - समचतुरस्र संस्थान संस्थित, कणगपुलगणिघसपम्हगोरे - कसौटी पर खचित स्वर्ण रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान गौर वर्ण वाले, उग्गतवे - उग्र तपस्वी, दित्ततवे - दीप्ततपस्वी - कर्मों को भस्मसात् करने में अग्नि के समान प्रदीप्त तप करने वाले, तत्ततवे - तप्त तपस्वी - जिनकी देह पर तपश्चर्या की तीव्र झलक व्याप्त थी, उराले - उराल - प्रबल-साधना में सशक्त, घोरगुणे- घोर गुण - परम उत्तम-जिनको धारण करने में अद्भुत शक्ति चाहिएऐसे गुणों के धारक, 'घोरतवस्सी - घोर तपस्वी-प्रबल तपस्वी, घोरबंभचेरवासी - घोर ब्रह्मचर्यवासी - कठोर ब्रह्मचर्य के पालक, उच्छूढसरीरे - उत्क्षिप्त शरीर - दैहिक सार संभाल
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org