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द्वितीय अध्ययन - श्रमणोपासक कामदेव - हस्ती रूप से घोर उपसर्ग ८९ *-*--*-*-*-*-*-*-00-00-08-28-08-12-10-08-28-12-2-12-28-08-08-28-08-08-28-12-28-02-08-08-08-08-28-08-08-02-08-12-02 अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुमं अदुहवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजसि'।
. कठिन शब्दार्थ - वेहासं - आकाश में, उव्विहामि - उछालूंगा, तिक्खेहिं - तीक्ष्ण, दंतमुसलेहिं - मूसल जैसे दांतों से, पडिच्छामि - झेलूंगा, अहे धरणि तलंसि - नीचे पृथ्वी तल पर, पाएसु - पांवों द्वारा, लोलेमि - रोंदूंगा। __भावार्थ - हे कामदेव! यदि तू श्रावक-व्रतों का भंग नहीं करेगा, तो मैं तुझे सैंड से पकड़ कर पौषधशाला से बाहर ले जाऊँगा और आकाश में ऊँचा फेंक दूंगा तथा नीचे गिरते समय मेरे तीक्ष्ण दाँतों पर झेल कर नीचे भूमि पर गिरा दूंगा तथा तीन बार पाँवों तले कुचलूँगा। जिससे तू आर्तध्यान करता हुआ अकाल में मर जायेगा।
तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं हत्थिरूवेणं एवं वत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ। तए णं से देवे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चंपि तच्चंपि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हं भो कामदेवा! तहेव जाव सोऽवि विहरइ।। ___ भावार्थ - हाथी का रूप धारण किये हुए. देव द्वारा यों कहे जाने पर भी कामदेव श्रमणोपासक निर्भय भाव से धर्मोपासना में रत रहे। तब उस हाथी रूपधारी देव ने कामदेव श्रमणोपासक को निर्भीक रूप से धर्मध्यान में निरत देखा तो उसने कामदेव श्रावक को दूसरी बार तीसरी बार उपर्युक्त वचन कहे, पर श्रमणोपासक कामदेव पूर्ववत् निर्भयता पूर्वक धर्मध्यान में रत रहे। .
तए णं से देवे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणोवासयं सोण्डाए गिण्हइ, गिण्हित्ता उड्ढं वेहासं उव्विहइ, उव्विहित्ता तिक्खेहिं दंतमुसलेहिं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उजलं जाव अहियासेइ।
कठिन शब्दार्थ - सोंडाए - सूण्ड से, उज्जलं - तीव्र। भावार्थ - हस्तीरूपधारी उस देव ने जब कामदेव श्रमणोपासक को धर्मध्यान ध्याते
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