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श्री उपासकदशांग सूत्र
देवकृत उपसर्ग - पुत्र वध की धमकी
(२६) तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे एगं (महं) णीलुप्पल जाव असिं गहाय चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-हं भो चुलणीपिया! समणोवासया! जहा कामदेवो जाव ण भंजसि तो ते अहं अज जेठं पुत्तं साओ गिहाओ णीणेमि, णीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएता तओ मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अइहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आयंचामि, जहा णं तुमं अदृदुहवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजसि ।
कठिन शब्दार्थ - णीणेमि - निकालूंगा, अग्गओ - आगे, घाएमि - मार डालूंगा, मंससोल्ले - मांस खण्ड, आदाणभरियसि - तैल से भरी हुई, कंडाहयंसि - कढाही में, अद्दहेमि - उबालूंगा-तलूंगा, सोणिएण - रक्त से, आयंचामि - सिंचूंगा, अदुहट्टवसट्टे - आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीडित हो कर। ____भावार्थ - अर्द्धरात्रि के समय उसके समीप (कामदेव की भाँति) एक देव आया तथा नीलकमल के समान खड्ग धारण कर बोला यावत् “यदि तू व्रत-भंग नहीं करेगा, तो मैं आज तेरे सबसे बड़े पुत्र को तेरे घर से ला कर तेरे समक्ष मारूंगा तथा उसके मांस के तीन खण्ड कर के उबलते हुए तेल के कड़ाह में तलूँगा और उस मांस एवं रक्त का तेरे शरीर पर सिंचन करूँगा, जिससे तू आर्तध्यान के वश हो, अकाल मृत्यु को प्राप्त करेगा।"
धर्म दृढ़ता
(२७) तए णं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ।
भावार्थ - उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी चुलनीपिता श्रमणोपासक डरे नहीं और धर्म में स्थिरचित्त रहे।
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