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श्रमणोपासक चुलनीपिता - चुलनीपिता का क्षोभ
लिए "देवयगुरुजणणी” विशेषण दिया है जो कि माता के प्रति रहे सम्मान, आदर और श्रद्धा का द्योतक है। संतति पर माता पिता का महान् उपकार होता है उन्हें धर्म मार्ग पर आगे बढ़ा कर ही उपकार का बदला चुकाया जा सकता है अन्यथा मां बाप के ऋण से कभी उऋण नहीं बना जा सकता है। न केवल जैन धर्म में अपितु अन्य सभी परंपराओं में माता का असाधारण महत्त्व स्वीकार किया गया है। इसीलिये कहा जाता है।
तीसरा अध्ययन
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"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी"
अर्थात् माता और मातृभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर माना है।
तणं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहर। तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता चुलणीपियं समणोवासयं दोच्वंपि तच्वंपि एवं वयासी - हं भो चुलणीपिया! समणोवासया! तहेव जाव ववरोविज्जसि ।
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भावार्थ. उस देव द्वारा इस प्रकार धमकी दिये जाने पर भी चुलनीपिता श्रमणोपासक निर्भयता से धर्मध्यान में लीन रहा ।
जब उस देव ने चुलनीपिता को निर्भिक देखा तो दूसरी बार, तीसरी बार पुनः उसी प्रकार कहा - हे श्रमणोपासक चुलनीपिता! यावत् असमय में ही तुम प्राणों से हाथ धो बैठोगे ।
चुलनीपिता का क्षोभ
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तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्वंपि तच्वंपि एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए ५ - अहो णं इमे पुरिसे अणारिए अणारियबुद्धी अणारियाई पावाइं कम्माई समायरइ, जेणं ममं जेट्ठ पुत्तं साओ गिहाओ णीणेड़, णीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता जहा कयं तहा चिंतेइ जाव गायं आयंचड़, जेणं ममं मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ जाव सोणिएण य आयंचड़, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ तहेव जाव आयंचइ, जाऽवि य णं इमा ममं माया भद्दा सत्थवाही देवयगुरुजणणी दुक्करदुक्करकारिया तंपि य णं इच्छइ साओ गिहाओ णीणेत्ता मम अग्गओ घाएत्तए, तं सेय खलु ममं एवं पुरिसं गिहित्तए ।
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