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द्वितीय अध्ययन - श्रमणोपासक कामदेव - इन्द्र से प्रशंसित
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सखिंखिणियाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिए कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी
- कठिन शब्दार्थ - हारविराइयवच्छं - वक्षस्थल पर हार सुशोभित, उज्जोवेमाणं - उद्योतित - प्रकाश युक्त करते हुए, पभासेमाणं - प्रभासित - प्रभा या शोभायुक्त करते हुए, पासाईयं- प्रासादित-प्रसाद या आह्लाद युक्त, दरिसणिजं - दर्शनीय, अभिरूवे - अभिरूप - मनोज्ञ-मन को अपने में रमा लेने वाला, पडिरूवे - प्रतिरूप - मन में बस जाने वाला, अंतलिक्खपडिवण्णे - आकाश में अवस्थित, सखिंखिणियाइं - छोटी-छोटी घंटिकाओं से युक्त, परिहिए - धारण किये हुए।
- भावार्थ - उस देव का वक्षस्थल मालाओं से सुशोभित था, आभूषणों तथा शरीर की कांति से दशों-दिशाएँ प्रकाशित हो रही थीं, वह देव दर्शनीय, बार-बार दर्शनीय और रूप कांति में अनुपम था। ऐसी विकुर्वणा करके वह कामदेव श्रमणोपासक की पौषधशाला में आया। अंतरिक्ष में धुंघरु सहित श्रेष्ठ पाँचों रंगों के प्रधान वस्त्र धारण किए हुए उस देव ने कामदेव से इस प्रकार कहा।
इन्द्र से प्रशंसित _ 'हं भो कामदेवा! समणोवासया! धण्णेसि णं तुमं देवाणुप्पिया! स(म)पुण्णे कयत्थे कयलक्खणे, सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव णिग्गंथे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया।
कठिन शब्दार्थ - धण्णेसि - धन्य हो, सपुण्णे - पुण्यशाली, कयत्थे - कृत-कृत्य, कयलक्खणे - कृत लक्षण - शुभ लक्षण वाले, जम्मजीवियफले - जन्म और जीवन का सुफल, पडिवत्ती - प्रतिपत्ति - विश्वास आस्था, लद्धा - लब्ध, पत्ता - प्राप्त, अभिसमण्णागया- अभिसमन्वागत-स्वायत्त। . भावार्थ - हे कामदेव श्रमणोपासक! आप धन्य हैं, हे देवानुप्रिय! आप पुण्यशाली हैं, कृतार्थ हैं, आपके शारीरिक लक्षण शुभ हैं, मनुष्य-जन्म और जीवन प्राप्त कर आपने सफल किया है, आप महान् पुण्यात्मा हैं। आपको निपँथ-प्रवचन में पूर्ण दृढ़ता, निष्ठा, श्रद्धा एवं रुचि मिली, प्राप्त हुई, भली प्रकार स्थित हुई है।
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