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बीयं अज्झयणं - द्वितीय अध्ययन श्रमणोपासक कामदेव
(१६)
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ?
भावार्थ - जम्बूस्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से पूछा - हे भगवन् ! सिद्धि प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें अंग उपासकदशा के प्रथम अध्ययन में जो भाव फरमाए, मैंने आपके मुखारविंद से सुने । हे भगवन्! दूसरे अध्ययन में प्रभु ने क्या भाव फरमाए हैं? कामदेव की संपदा
एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था । पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया । कामदेवे गाहावइ । भद्दा भारिया । छ हिरण्णकोडीओ णिहाणपउत्ताओ, छ वुढिपउत्ताओ, छ पवित्थरपउत्ताओ। छ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं ।
भावार्थ आर्य सुधर्मा स्वामी ने फरमाया - हे जंबू ! इस अवसर्पिणीकाल के चौथे आरे में जब भगवान् महावीर स्वामी विचर रहे थे, उस समय चम्पा नाम की नगरी थी, पूर्णभद्र उद्यान था, जितशत्रु राजा राज्य करते थे, 'कामदेव' नामक गाथापति थे, जिनकी पत्नी का नाम 'भद्रा' था । कामदेव के पास छह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं जितना धन निधान के रूप में सुरक्षित था, इतना ही व्यापार में तथा इतना ही घर- बिखरी के रूप में फैला हुआ था । गायों के छह वज्र थे। एक वज्र में दस हजार गायें होती हैं।
श्रावक धर्म की आराधना
समोसरणं । जहा आणंदो तहा णिग्गओ, तहेव सावयधम्मं पडिवज्जइ । सा
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