________________
५४
श्री उपासकदशांग सूत्र
___ भावार्थ - अर्जुन वृक्ष की गाँठ के समान कुटिल एवं बहुत वीभत्स घुटने थे। घुटने के नीचे का भाग मांस-रहित तथा कठोर रोमावली वाला था। पाँव मसाला पीसने की शिला के समान थे। लोढ़ी के समान अंगुलियाँ थीं, सीप-संपुट के समान नाखून थे, गाड़ी के पिछले भाग में लटकते काष्ठ के समान छोटे तथा बेडोल घुटने थे, भृकुटी बड़ी भयावनी और कठोर थी (विकराल टेढ़ी, कृष्ण मेघ के समान काली भौहें थीं, लम्बे होठों से दाँत बाहर निकले हुए थे-पाठान्तर)।
अवदालिय-वयण-विवर-णिल्लालियग्गजीहें सरडकयमालियाए उंदुरमालापरिणद्धसुकयचिंधे णउलकयकण्णपूरे सप्पकयवेगच्छे । ____ भावार्थ - उसने अपना दरार जैसा मुंह फाड़ रखा था, जीभ बाहर निकाल रखी थी। वह गिरगिटों की माला पहने था। चूहों की माला भी उसने धारण कर रखी थी, जो उसकी पहचान थी। उसके कानों में कुण्डलों के स्थान पर नेवले लटक रहे थे। उसने अपनी देह पर सांपों को दुपट्टे की तरह लपेट रखा था।
अप्फोडते अभिगजंते भीममुक्कट्टहासे णाणाविहपंचवण्णेहिं लोमेहिं उवचिए एगं महं णीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्यगासं असिं खुरधारं गहाय जेणेव पोसहसाला जेणेव कामदेवे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आसुरत्ते रुठे कुविए चण्डिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणोवास एवं वयासी -
कठिन शब्दार्थ - णीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं - नील कमल, भैंसे के सींग तथा अलसी के फूल जैसी नीली, आसुरत्ते - अत्यन्त क्रुद्ध, रुढे - कुपित, चंडिक्किएविकराल होता हुआ, मिसिमिसीयमाणे - मिसमिसाहट करता हुआ।
भावार्थ - इस प्रकार भयंकर रूप बना कर भीम, उत्कृष्ट अट्टहास कर के करतल से स्फोटन करता हुआ, मेघ के समान गर्जना करता हुआ, पाँचों रंगों वाले लोमों सहित, नील कमल के समान, भैंसे के सींग के समान, अलसी के कुसुम तथा नील के समान प्रभा वाली तीक्ष्ण धार वाली तलवार हाथ में ग्रहण कर के जहाँ कामदेव श्रमणोपासक की पौषधशाला थी, वहाँ वह देव आया औरभयंकर क्रोधाभिभूत हो कर मिसमिसाहट करता हुआ कहने लगा। ___ 'हं भो कामदेवा! समणोवासया! अप्पत्थियपत्थिया दुरंतपंतलक्खणा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org