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श्री उपासकदशांग सूत्र
(इ) ओदण-विधि का परिणाम करते हैं - मैं कलमशालि (चावल विशेष) के अतिरिक्त शेष ओदण-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
(ई) सूप-विधि का परिमाण करते हैं - मैं चने, मूंग और उड़द की दाल के सिवाय शेष सूप-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
(उ) घृत-विधि का परिमाण करते हैं - 'शारदीय गो-घृतसार' के अतिरिक्त शेष घृत विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
(ऊ) साग-विधि का. परिमाण करते हैं - बथुआ, सौवस्तिक (चंदलाई) और मंडुकी (साग-विशेष) के अतिरिक्त शेष साग-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
(ए) माधुरक-विधि का परिमाण करते हैं - मैं 'पालंका' के अतिरिक्त शेष माधुरक-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ। __ (ऐ) जीमण-विधि का परिमाण करते हैं - घोलबड़े व दाल के बड़ों के अतिरिक्त शेष जीमण विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
(ओ) पानी का परिमाण करते हैं - 'आकाश से गिरे पानी' के अतिरिक्त शेष घानी का त्याग करता हूँ।
(औ) मुखवास-विधि का परिमाण करते हैं - मैं (इलायची, लोंग, कपूर, कंकोल और . जायफल) पांचों सौगंधिक तंबोल के अतिरिक्त शेष मुखवास-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
विवेचन - भोजन-विधि के परिमाण में उपर्युक्त दस बोलों की मर्यादा करते हैं। ‘सारइए' के दो अर्थ मिले हैं - १. शरद ऋतु में निष्पन्न २. प्रातः उषाकाल में बनाया हुआ। 'गोघयमंडेणं' का अर्थ है स्वस्थ उत्तम नस्ल की गायों के दही से शुद्धतापूर्वक बनाया हुआ घी। 'पालंका' के लिए इतनी ही जानकारी मिलती है कि यह महाराष्ट्र देश का प्रसिद्ध मीठा फल है। आकाश से बरसे पानी को संभवतः बड़े-बड़े टाँकों में जेल लिया जाता था। जमीन पर नहीं पड़ने के कारण उसे 'अंतरिक्षोदक' कहा गया है।
८. अनर्थदण्ड विरमण तयाणंतरं च णं चउव्विहं अणट्ठादण्डं पच्चक्खाइ, तंजहा - अवज्झाणायरियं पमायायरियं हिंसप्पयाणं पावकम्मोवएसे ३, ७॥५॥
कठिन शब्दार्थ - चउव्विहं - चार प्रकार के, अणट्ठादंडं - अर्थकारण, प्रयोजन
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