________________
प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - व्रतों के अतिचार
५१ -2-10-00-10-1-1-1-----------
24-10-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-0-0--0-0--2-
यथासंविभाग (अतिथिसंविभाग) व्रत के अतिचार तयाणंतरं च णं अहासंविभागस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा ण समायरियव्वा, तंजहा - सचित्तणिक्खेवणया, सचित्तपिहणया, कालाइक्कमे, परो(र)ववएसे, मच्छरिया १२।
कठिन शब्दार्थ - अहासंविभागस्स - यथासंविभाग (उचित रूप से अन्न, पान, वस्त्र आदि का विभाजन - योग्य पात्र को इन स्वाधिकृत वस्तुओं में से एक भाग देना) के सचित्तणिक्खेवणिया - सचित्त निक्षेपणता, सचित्तपिहणया - सचित्त पिधानता, कालाइक्कमेकालातिक्रम, परववएसे - परव्यपदेश, मच्छरियाए - मत्सरिता।
. भावार्थ - तदनन्तर श्रमणोपासक को यथा संविभाग व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिये। वे इस प्रकार हैं - १. सचित्त निक्षेपणता २. सचित्त पिधानता ३. कालातिक्रम ४. परव्यपदेश तथा ५. मत्सरिता।
विवेचन - यथासंविभाग व्रत का प्रचलित नाम ‘अतिथिसंविभाग व्रत' है। इसका अर्थ है - अतिथि यानी जिनके आने की तिथि नियत नहीं है कि वे अमुक तिथि को आयेंगे - वे साधु साध्वी यहाँ पर 'अतिहिं' शब्द से ग्रहण किये गये हैं। संविभाग अर्थात् गृहस्थ अपने लिए भोजन पानी बनाता है उसमें से कुछ अंश, कुछ हिस्सा, कुछ विभाग मुनियों-श्रमण निर्ग्रन्थ को देना, यह अतिथि संविभाग है।
इस व्रत के पांच अतिचार इस प्रकार हैं - १. सचित्त निक्षेपणता - अचित्त निर्दोष वस्तु को नहीं देने की बुद्धि से सचित्त पर रख देना। २. सचित्त पिधानता - कुबुद्धि पूर्वक अचित्त वस्तु को सचित्त से ढक देना।
दोनों अतिचारों का अंतर इस प्रकार समझना - नमक, मिर्च आदि की मसालेदानी पर रोटी का कटोरदान रखना, पानी के मटके पर धोवन की मटकी रख देना सचित्त निक्षेपणता अतिचार है। कटोरदान पर मसालेदानी रखना या धोवन की बाल्टी पर कच्चे पानी का भरा लोठा रख देना-यह सचित्त पिधानता अतिचार है। दोनों ही स्थितियों में प्रासुक एषणीय आहार भी सचित्त संघट्टित होने से मुनियों के लिए अग्राह्य हो जाता है। यह मुख से भिक्षा नहीं देने की बात न कह कर भिक्षा न देने का व्यवहार से धूर्तता पूर्ण उपक्रम है।
३. कालातिक्रम - काल या समय का अतिक्रम - उल्लंघन करना। गोचरी का समय
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org