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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - आनंद श्रावक का श्रेष्ठ संकल्प .
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कठिन शब्दार्थ - पहू - समर्थ, समणोवासगपरियागं - श्रमणोपासक पर्याय का, पाउणिहिइ - पालन करेगा, सोहम्मे कप्पे - सौधर्म कल्प में (सौधर्म नामक देवलोक में) अरुणे विमाणे - अरुण विमान में, देवत्ताए - देव रूप से, उववजिहिइ - उत्पन्न होगा, चत्तारि पलिओवमाइं - चार पल्योपम की, ठिई - स्थिति, पण्णत्ता - कही गई है, पडिलाभेमाणे - प्रतिलाभित करते हुए।
भावार्थ - भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वंदन नमस्कार कर पूछा - हे भगवन्! क्या आनंद श्रमणोपासक आपके पास मुंडित एवं प्रव्रजित होने में समर्थ है? ___ भगवान् ने फरमाया - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं। आनन्द श्रमणोपासक बहुत वर्षों तक श्रावक पर्याय का पालन कर प्रथम देवलोक सौधर्म कल्प के अरुण नामक विमान में उत्पन्न होगा। वहाँ अनेक देवों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है. तदनुसार आनन्द की भी चार पल्योपम की देव स्थिति होगी। ___ तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी एक दिन किसी समय विहार कर अन्यत्र (अन्यजनपदों में) चले गये।
. आनन्द गाथापति जब आनंद श्रमणोपासक हो गये वे जीव अजीव आदि नव तत्त्वों के ज्ञाता यावत् साधु साध्वियों को प्रतिलाभित करते हुए काल यापन करने लगे। तब आनंद की पत्नी शिवानंदा भी श्रमणोपासिका हो गई यावत् प्रतिलाभित करती हुई धार्मिक जीवन जीने लगी। आनन्द शावक का श्रेष्ठ संकल्प
(१०) तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोइस संवच्छराई वीइक्कंताई, पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था - ‘एवं खलु अहं वाणियगामे णयरे बहूणं राईसर जाव सयस्सवि य णं कुडुम्बस्स जाव आधारे, तं एएणं विक्खवेणं अहं णो संचाएमि समणस्स भगवओं महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्तिं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, तं सेयं खलु ममं कल्लं जाव जलंते विउलं असणं० जहा पूरणो जाव जेट्टपुत्तं कडम्बे
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