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श्री उपासकदशांग सूत्र
सोच्चा णिसम्म हट्ट जाव गिहिधम्म पडिवजइ, पडिवजित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ, दुरूहित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
कठिन शब्दार्थ - खिप्पामेव - शीघ्र, लहुकरण - लघुकरण, धम्मियं - धार्मिक, जाणप्पवरं - यान प्रवर-श्रेष्ठ रथ। ___भावार्थ - आनन्द श्रमणोपासक से भगवान् की धर्म देशना और व्रत धारण की बात सुन कर शिवानंदा अत्यंत प्रसन्न हुई। उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर कहा - 'श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त धार्मिक कार्यों में उपभोग में आने वाला यान प्रवर-श्रेष्ठ रथ उपस्थित करो।' धार्मिक रथ पर सवार होकर वह भगवान् की सेवा में पहुँची यावत् पर्युपासना करने लगी। तब भगवान् महावीर स्वामी ने शिवानन्दा को तथा उपस्थित जनपरिषद् को धर्मदेशना दी। तदनन्तर शिवानन्दा श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से धर्म सुनकर तथा हृदय में धारण करके अत्यंत प्रसन्न हुई यावत् श्रावक धर्म स्वीकार किया, स्वीकार कर वह उसी धार्मिक उत्तम रथ पर सवार हुई, सवार होकर जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गयी।
आनन्द का भविष्य कथन
'भंते'त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - ‘पहू णं भंते! आणंदे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुण्डे जाव पव्वइत्तए?'
. ___णो इणढे समठे, गोयमा! आणंदे णं समणोवासए बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणिहिइ, पाउणित्ता जाव सोहम्मे कप्पे अरुणे विमाणे देवत्ताए उववजिहिइ। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।तत्थणं आणंदस्सऽविसमणोवासगस्स चत्तारिपलिओवमाइंठिईपण्णत्ता।
तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ बहिया जाव विहरइ।
तए णं से आणंदे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ। तए णं सा सिवाणंदा भारिया समणोवासिया जाया जाव पडिलाभेमाणी विहरइ।
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