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श्री उपासकदशांग सूत्र
अण्णउत्थियदेवयाणि - अन्ययूथिक देव, अण्णउत्थियपरिग्गहियाणि - अन्ययूथिक परिगृहीत (स्वीकृत), अणालत्तेण - बोलाए बिना, आलवित्तए - आलाप करना, संलवित्तए - संलाप करना, दाउं - देना, अणुप्पदाउं - अनुप्रदान करना, रायाभिओगेणं - राजाभियोग से, गणाभिओगेणं - गणाभियोग से, बलाभिओगेणं - बलाभियोग से, देवयाभिओगेणं - देवाभियोग से, गुरुणिग्गहेणं - गुरु निग्रह से, वित्तिकंतारेणं - आजीविका के संकट ग्रस्त होने की स्थिति में।
भावार्थ - तत्पश्चात् आनंद गाथापति ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का श्रावक धर्म स्वीकार किया। स्वीकार कर भगवान् महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर इस प्रकार कहा -
हे भगवन्! आज से मुझे अन्यतीर्थियों के साधुओं को, अन्यतीर्थिक देवों को एवं अन्यतीर्थि प्रगृहीत जैन साधुओं को वंदन-नमस्कार करना नहीं कल्पता है। उनसे बोलाए बिना आलापसंलाप करना नहीं कल्पता है। उन्हें पूज्य मान कर अशन, पान, खादिम, स्वादिम देना, अनुप्रदान करना मेरे लिए कल्पनीय नहीं है। परन्तु राजा, की आज्ञा से, संघ समूह के दवाब से, बलवान के भय से, देव के भय से, माता-पिता आदि ज्येष्ठजनों की आज्ञा से और अटवी में भटक जाने पर अथवा आजीविका के कारण कठिन परिस्थिति को पार करने के लिए किन्ही मिथ्यादृष्टि देवादि को वंदनादि करनी पड़े तो आगार (छूट) है।
विवेचन - श्रावक के बारह व्रतों में पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षा व्रत हैं
पांच अणुव्रत - अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पांच मूल व्रतों को अणुव्रत कहते हैं।
तीन गुणव्रत - अणुव्रतों के गुणात्मक विकास में सहायक होने अथवा साधक के चारित्र मूलक गुणों की वृद्धि करने के कारण इन्हें 'गुणवत' कहते हैं। दिशापरिणाम, उपभोग परिभोग परिमाण और अनर्थदण्ड विरमण व्रत - ये तीन गुणव्रत हैं।
चार शिक्षाव्रत - जिनका अभ्यास पुनः-पुनः किया जाता है और जो अभ्यास द्वारा आत्मा को शिक्षित-संस्कारित करते हैं, वे शिक्षाव्रत कहलाते हैं। सामायिक व्रत, देशावगासिक व्रत पौषध व्रत और अतिथिसंविभाग व्रत - ये चार शिक्षाव्रत हैं जो अणुव्रतों के अभ्यास के लिए और साधना में स्थिरता लाने के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। ... प्रस्तुत सूत्र में तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत - इस प्रकार सात शिक्षाव्रत का कथन किया गया है। गुणव्रत और शिक्षाव्रत ये दोनों ही अणुव्रतों के अभ्यास में सहायक बनते हैं अतः स्थूल दृष्टि से सात शिक्षाव्रत का कथन उचित ही है।
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