________________
प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - व्रतों के अतिचार
४६ **-18-18-01-08-08-2-8-10-08-18--8-12-08-08-08-18-18-2-8-10-28-08-28-12-08-19-08-18--28-08-10-08-08-08-02-28-10-04-
लौकिक एषणा, आरम्भ आदि सीमित कर जीवन को उत्तरोत्तर आत्म-निरत बनाने में देशावकाशिक व्रत अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
पौषधोपवास व्रत के अतिचार तयाणंतरं च णं पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा ण समायरियव्वा, तंजहा - अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहियसिज्जासंथारे, अप्पमज्जियदुप्पमज्जियसिजासंथारे, अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहियउच्चारपासवणभूमी, अप्पमजियदुप्पमज्जियउच्चारपासवणभूमी, पोसहोववासस्स सम्म अणणुपालणया ११। ___ कठिन शब्दार्थ - पोसहोववास - पौषधोपवास-उपवास युक्त पौषध, अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय सिज्जा संथारे - अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित शय्या संस्तारक, अप्पमजिय दुप्पमजिय सिजा संथारे - अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित शय्या संस्तारक, अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवण भूमी - अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित उच्चार प्रस्रवण भूमि, अप्पमजिय दुप्पमज्जिय उच्चारपासवण भूमी - अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित उच्चार प्रस्रवण भूमि, पोसहोववासस्स सम्म अणणुपालणया - पौषधोपवास सम्यक् अननुपालन।
भावार्थ - तदनन्तर श्रमणोपासक को पौषधोपवास व्रत के पांच अतिचारों को जानना . चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं - १. अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित शय्या संस्तारक २. अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित शय्या संस्तारक ३. अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित उच्चार प्रस्रवण भूमि ४. अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित उच्चार प्रस्रवण भूमि ५. पौषधोपवास सम्यक् अननुपालन।
. विवेचन - १. पौषध - 'पुष्टिं धर्मस्य दधातीति पौषधः' - धर्म को पुष्ट करने वाली क्रिया विशेष। २. उववास - उपवास-'यामाष्टकम् अभोजनम् उपवास स विज्ञेयः। उपावृतस्य दोषेभ्यः सम्यग्वासौ गुणैः सह उपवासः स विज्ञेयः सर्व भोगविवर्जितः' - सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक के लिए आहार का प्रतिषेध उपवास है। पापों व दोषों से दूर रह कर सम्यम् गुणों एवं धर्म के समीप रहना, सभी भोगों का वर्जन करना उपवास है। आत्मा के समीप वास करना उपवास है। ३. सिज्जा-शय्या - पौषध करने का स्थान। ४. संथार-संस्तार - दर्भादि की शय्या (बिछौना) जिस पर सोया जाय।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org