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श्री उपासकदशांग सूत्र . 40-12-08-0-0-0-0-0-0-09-10-02-19-19-12-2-12-20-08-00-00-12-08-2-12-10--2--000-00-00-00-10- द्रव्यों को जला कर शरीर वस्त्र, भवन आदि को धूपित करना सुवासित करना धूपन विधि है। अगरुतुरुक्कधूवमाइएहिं - अगर, तुरुक्क (लोबान) धूप आदि।
भावार्थ - ११. तदनन्तर आनंद जी धूपन विधि का परिमाण करते हैं - "मैं अगरु, तुरुक्क (लोबान) धूप के सिवाय सभी धूपन विधि का त्याग करता हूँ।"
विवेचन - आर्द्रनयनिका विधि से लगा कर ग्यारहवीं धूपन विधि तक के सारे बोलों में खाने पीने की एक भी चीज नहीं आई है। ये सारे बोल शरीर के बाह्य परिभोग के ही हैं अतः तीसरी फलविधि में भी खाने पीने के फल ग्रहण नहीं किये गये हैं। खाए जाने वाले फलों की मर्यादा आगे माधुरकविधि में आई है।
अब खाए जाने वाले तथा पिए जाने वाले दस बोलों को भोजनविधि की मर्यादा में इस . प्रकार ग्रहण करते हैं।
तयाणंतरं च णं भोयणविहिपरिमाणं करेमाणे पेजविहिपरिमाणं करेइ, । 'णण्णत्थ एगाए कट्ठपेजाए अवसेसं पेजविहिं पच्चक्खामि ३'।
तयाणंतरं च णं भक्खविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ एगेहिं घयपुण्णेहिं खंडखजएहिं वा, अवसेसं भक्खविहिं पच्चक्खामि ३'।
तयाणंतरं च णं ओदणविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ कलमसालिओदणेणं, अवसेसं ओदणविहिं पच्चक्खामि ३'।
तयाणंतरं च णं सूवविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ कलायसूवेण वा मुग्गमाससूवेण वा, अवसेसं सूवविहिं पच्चक्खामि ३'।
तयाणंतरं च णं घयविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ सारइएणं गोघयमण्डेणं, अवसेसं घयविहिं पच्चक्खामि ३'। ___तयाणंतरं च णं सागविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ वत्थुसाएण वा तुंबसाएण वा सुत्थियसाएण वा मंडुक्कियसाएण वा अवसेसं सागविहिं पच्चक्खामि ३'।
तयाणंतरं च णं माहुरयविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ एगेणं पालंगामाहुरएणं अवसेसंमाहुरयविहिंपच्चक्खामि ३'।
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