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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - व्रतों के अतिचार
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कठिन शब्दार्थ - भोयणाओ - भोजन की अपेक्षा से, कम्मओ - कर्म की अपेक्षा से, सचित्ताहारे - सचित्त आहार, सचित्तपडिबद्धाहारे - सचित्त प्रतिबद्ध आहार, अप्पउलिओसहिभक्खणया - अपक्वओषधि भक्षणता, दुप्पउलिओसहि भक्खणया - दुष्पंक्व औषधि भक्षणता, तुच्छोसहिभक्खणया - तुच्छ औषधि भक्षणता, पण्णरस कम्मादाणाई - पन्द्रह कर्मादान, इंगालकम्मे - अंगार कर्म, वणकम्मे - वन कर्म, साडीकम्मे - शकट कर्म, भाडीकम्मे - भाटी कर्म, फोडीकम्मे - स्फोटन कर्म, दंतवाणिजे - दन्त वाणिज्य, लक्खवाणिजे - लाक्षा वाणिज्य, रसवाणिजे - रस वाणिज्य, विसवाणिज्जे - विष वाणिज्य, केसवाणिजे - केश वाणिज्य, विसवाणिजे - विष वाणिज्य, केसवाणिजे - केश वाणिज्य, जंतपीलणकम्मे - यंत्रपीडन कर्म, निल्लंछणकम्मे - निलांछन कर्म, दवग्गिदावणया - दवग्नि दापनता, सरदहतलायसोसणया - सर-हृद-तडाग शोषणता, असईजण पोसणया - असतीजन पोषणता। . ____ भावार्थ - तदनन्तर उपभोग परिभोग दो प्रकार का कहा गया है। यथा - भोजन की अपेक्षा से तथा कर्म की अपेक्षा से। भोजन की अपेक्षा से श्रमणोपासक को पांच अतिचारों को जानना चाहिए उनका आचरण नहीं करना चाहिये। वे इस प्रकार हैं - १. सचित्त आहार २. सचित्त प्रतिबद्ध आहार ३. अपक्व औषधि भक्षणता ४. दुष्पक्व औषधि भक्षणता ५. तुच्छ ओषधि भक्षणता। - कर्म की अपेक्षा से श्रमणोपासक को पन्द्रह कर्मादानों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं - १. अगार कर्म २. वन कर्म ३. शकट कर्म ४. भाटी कर्म ५. स्फोटन कर्म ६. दन्त वाणिज्य ७. लाक्षावाणिज्य ८. रस वाणिज्य ६. विष वाणिज्य १०. केश वाणिज्य ११. यंत्रपीड़न कर्म १२. निर्लाछन कर्म १३. दवाग्निदापनता १४. सरहदतडाग शोषणता और १५. असती-जन-पोणणता।
विवेचन - उपभोग परिभोग परिमाण व्रत के भोजन विषयक पांच अतिचार और कर्म विषयक पन्द्रह अतिचार कहे गये हैं - इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार हैं -
भोजन विषयक पांच अतिचार १. सचित्त वस्तु का आहार - जिसने सचित्त का त्याग कर दिया है, वह अनाभोग से सचित्त का आहार कर ले अथवा जिसने मर्यादा की है, उसके उपरांत सचित्ताहार करे तो यह अतिचार लगता है।
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