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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - व्रत-ग्रहण ---- -----------------0-00-00-04-04-28-10-08-18-28-12-10-00--
तयाणंतरं च णं जेमणविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ सेहंबदालियंबेहिं, अवसेसं जेमणविहिं पच्चक्खामि ३'।
तयाणंतरं च णं पाणियविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ एगेणं अंतलिक्खोदएणं, अवसेसं पाणियविहिं पच्चक्खामि ३'।
तयाणंतरं च णं मुहवासविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ पंचसोगन्धिएणं तम्बोलेणं अवसेसं मुहवासविहिं पच्चक्खामि ३'६।
कठिन शब्दार्थ - भोयणविहि - भोजन विधि - खाने पीने की वस्तुएं, पेजविहि - पेयविधि, कट्टपेजाए - चावल की मांड, उबले हुए मूंगों का रस, भक्खणविहि - भक्षण विधि, घयपुण्णेहिं - खूब घी पचाए हुए, खंडखजएहिं - खाण्ड के खाजे, ओदणविहि -
ओदन विधि, कलमसालिओदणेणं - कलम शालि - चावल विशेष उस समय के सब से ऊंची जाति के चावल, सूवविहि - सूप विधि - दालों की मर्यादा, कलायसूवेण - चने की दाल, मुग्गमाससूवेण - मूंग, उड़द की दाल, घयविहि - घृत विधि, सारइणं गोघयमंडेणं - शारदीय गोघृत सार, सागविहिपरिमाणं - शाक विधि-हरी सब्जियों की मर्यादा, वत्थुसाएणबथुआ, सुत्थियसाएण - सौवस्तिक (चंदलौई) मंडुक्कियसाएण - मंडुकी (साग विशेष)अप्रसिद्ध सब्जी, माहुरयविहि - माधुरकविधि-रसाल फल, पालंगामाहुरएणं - पालंका माधुरकअप्रसिद्ध फल विशेष, जेमणविहि - व्यंजन विधि, सेहंबदालियंबेहि - कांजी के बड़े, खटाई युक्त दाल के बड़े (दही बड़े), पाणियविहि - पानी-विधि - पीने के पानी की मर्यादा, अंतलिक्खोदएण - अंतरिक्षोदक - आकाश से बरसा, टांकों में भरा गया पानी, मुहवासविहिमुखवासविधि - भोजन के बाद रसना एवं घ्राणेन्द्रिय को तृप्त करने वाले स्वादिम, पंचसोगंधिएणं तंबोलेणं - पांच सुगंधि पदार्थों (ईलायची, लवंग, कपूर, कंकोल और जायफल) से युक्त ताम्बूल।
भावार्थ - इसके बाद आनंदजी भोजन-विधि का परिमाण करते हुए - . (अ) पेय-विधि का परिमाण करते हैं - मैं उबाले हुए मूंग का जूस (पानी) और घी में तले चावलों के पेय के अतिरिक्त शेष पेय-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
(आ) भक्षण-विधि का परिमाण करते हैं - मैं घेवर व मीठे खाजों के अतिरिक्त शेष (मिष्ठान्न) भक्षण-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
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