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प्रथम अध्ययन श्रमणोपासक आनंद - आनंद का व्यक्तित्व
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गुज्झेसु - अत्यंत गोपनीय विषयों में विचार विमर्श करना। जो अत्यंत गंभीर प्रकृति का हो, बात अपने तक रखने वाला हो, बाहर किसी को भी नहीं कहने वाला हो, बात प्रकट हो जाय तो अनेक अनर्थ हो जाए - ऐसे गोपनीय विषयों में आनंद से पूछा जाता था। जैसे कुएं में पत्थर डाला गया तो वह कभी भी अपने आप कुएं से बाहर नहीं आयेगा । उसी प्रकार गुप्त रहस्यों को पचाने वाले आनंद गाथापति थे ।
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रहस्से - रहस् किसी भी बात की तह तक पहुँचना, बाल की खाल निकालना, तथ्यों के तल तक गति करना । जैसे - जासूस लोग येन केन प्रकारेण खोज बीन करते हैं वैसे ही आनंद जी भी इतनी पैनी बुद्धि वाले थे कि लोग उनसे गहनतम समस्याओं के समाधान पाते थे। दूध का दूध और पानी का पानी कर देने वाले थे, तथ्यों का निचोड़ निकाल कर मंत्र मुग्ध कर देते थे।
णिच्छएसु - फैसले देने में आनंद गाथापति बड़े ही न्यायनिपुण एवं विचक्षण थे। उनक न्याय लोहे की लकीर हुआ करता था। उस पर कोई संशय उठाने की गुंजाईश ही नहीं बचती थी। क्योंकि वे तटस्थ दृष्टि वाले एवं पक्षपात से परे थे। विवादग्रस्त विषयों में दोनों पक्षकारों को सत्य तथ्य से अवगत करा कर अपनी अपनी भूलें बता कर वे महान्यायाधिपति पद के योग्य बन गए थे।
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ववहारेसु - यहाँ व्यवहार का अर्थ है विधि या न्याय । न्याय का शाब्दिक अर्थ है अलग करना। झगड़ा दो व्यक्तियों अथवा पक्षों के बीच होता है तो दोनों उलझ जाते हैं, गुत्थमगुत्था हो जाते हैं। उनको समझा बुझा कर शान्त करने वाले थे। अपराधी को आत्मीयता पूर्वक अपराध के दोष बताते थे ताकि वह भविष्य में अपराध नहीं करता था । उनके पास सच्चरित्र बनाने की कला थी।
आपुच्छणिजे - उपरोक्त सभी कार्यों में कारणों में वे पूछे जाते थे, पूछने योग्य थे, उनसे पूछ कर किया गया कार्य पार पड़ता था, बिगड़ता नहीं था ।
पडिपुच्छणिज्जे - एक बार पूछा और काम पार नहीं पड़ा तो अनेक विषय ऐसे होते हैं जिनमें बारबार भी पूछना पड़ता है। आनंद गाथापति को बारबार भी पूछा जाता था, तब भी वे नाराज नहीं होते थे, अगले व्यक्ति को अल्पबुद्धि या नादान नहीं समझते थे । धैर्य और शांति से रास्ता बताते, उस पर चलाते और बार-बार पूछने पर भी सही सलाह देते थे।
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